बैठ सखी मैं पवन हिंडोला........


बैठ सखी मैं पवन हिंडोला
पिय से मिलने जाऊंगी

कहां बसे है पिय मोरे प्यारे
अब कैसे पता लगाऊंगी

लोग कहत हैं प्रियतम मेरे
घट घट में हैं वास करें

पवन हिंडोला चढकर मैं तो
अब पिय से मिलन रचाऊंगी

विरहाग्नि अब इतनी बढ़ गई
इक पल भी न अब चैन पडें
कहां छुपे हो पिय मेरे प्यारे
कौन रूप तुम हो धारे

अब तो तज दई देह संवरिया
पवन हिंडोला हूं विराजी
भई अपने मैं राम की बावरिया
अब वे राजी तो जग राजी

                      अभिलाषा चौहान 

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