घिर रहा है तम घना

घिर रहा है तम घना

हो तुम निर्भय मना

आस का दीपक जला

राह अपनी खुद बना

चल मना बस चल मना

दुःख को तू साथी बना

बाधाओं के फूल चुन

शूलों को गलहार बना

चल मना बस चल मना

करूणा दया प्रेम का

जगती में तू बीज बो

सत्य अहिंसा शांति का

पथ तुझको अजीज हो

झुकना न डरना न तू

चाहें आए कितनी आंधियां

आंधियों के बाद ही

अमृत बरसता है घना

चल मना बस चल मना

हाथ में पतवार ले

तू युवा कर्णधार है

युग अब कर रहा

परिवर्तन की पुकार है

शक्ति और सामर्थ्य का

अब वीर परिचय दे घना

चल मना बस चल मना

बदलना है वक्त को तो

तोड़ दे तू रूढियां

नवसृजन का बीज बोने

चल मना बस चल मना

                  अभिलाषा चौहान 

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