जाने कितने पल बीत गए ?!


जीवन की आपा - धापी में
जाने कितने पल बीत गए
जब खोले पन्ने यादों के
सारे के सारे रीत गए
क्या करना था इस जीवन में
कुछ भी सोचा न भाला
मन में इक खालीपन सा
आंखों के सपने बीत गए
न अपने लिए ही जी पाए
न मानवता के काम आए
कर्मों के लेखे जोखे में
कुछ भले न कर्म नजर आए
न भजन किया न हरि को भजा
जीवन भी जिया तो जैसे सजा
बस पेट की आग बुझाने में
लम्हे सारे गुजार दिए
बातें करते थे बडी - बडी
न बातों से कोई काम बना
जब ढूंढा खुद को इस जग में
तो पाया हम नाकाम रहे
वो पल अब कैसे लौटाएं
जो अंजाने ही बीत गए.....?



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