हैवानियत की हद भी हो गई पार....

आज कल नन्हीं - नन्हीं मासूम कलियों के साथ होने वाले लोमहर्षक दुराचार से मन
बड़ा उद्वेलित है। क्या हो गया है इस दुनिया को ? कहां से आ गई है इतनी विकृति कि अबोध बच्चियों को भी नहीं छोड़ा जा रहा है।
उसी पर कुछ पंक्तियां.....

निर्भया हो या गुडिया
या हो किसी आंगन की चिड़िया
नहीं महफूज कहीं भी
छिपे हुए हैवानो से
इन बर्बर शैतानों से
जो घात लगाए बैठे हैं
जो नजर जमाए बैठे हैं
इंसानों के वेश में
बैठे छिपे भेड़िये
मिटाने वजूद उसका
जो अभी कली थी
या पुष्प बन खिली थी
दरिंदों की नजर में कहां
उम्र उसकी खली थी!
वहशियत ने मिटा दिया
अस्तित्व उसका
बेसुध बेहाल बेबस
जिंदा लाश सी वो पड़ी
बात उठी, निकल पड़ी
कपडों पर आई
क्यो दी इतनी छूट
ये चर्चा गरमाई
बोल-बोल कर सबने
अपना दाय निभाया
गुडिया तो बच्ची थी
मन की वो कच्ची थी
अनभिज्ञ थी सब बातों से
न जाने कितनी गुडिया
बन रही शिकार
हैवानियत की
हो गई हदें पार
वहशियत की
क्या हुआ समाज को
वो चुप  क्यों है ?
अब जागने का वक्त है
सुप्त क्यों है?
आओ बनाए समाज ऐसा
जी सकें निर्भीक जिसमें
हमारी बिटिया
हम सबकी बिटियां !!






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