हूं मैं एक अबूझ पहेली.....!
एक भारतीय गृहिणी या कहें नारी बेटी, पत्नी और मां के रूप में ही जानी जाती है। इन रूपों में उसका अपना अस्तित्व कहीं खो जाता है, उसकी व्यथा को अभिव्यक्त करने की छोटी सी कोशिश .......
भीड़ से घिरी लेकिन
बिल्कुल अकेली हूं मैं
हां, एक अबूझ पहेली हूं मैं
कहने को सब अपने मेरे
रहे सदा मुझको हैं घेरे
पर समझे कोई न मन मेरा
खामोशियो ने मुझको घेरा
ढूंढूं मैं अपना स्थान...
जिसका नहीं किसी को ज्ञान
क्या अस्तित्व है घर में मेरा?
क्या है अपनी मेरी पहचान?
अपने दर्द में बिल्कुल अकेली
हूं मैं एक अबूझ पहेली...
सबका दर्द समझती हूं मैं
बिना कहे सब करती हूं मैं
कहने को गृहिणी हूं मैं
हर हिस्से में बंटी हुई मैं
इससे ऊपर कहां उठ पाती
बस इतनी मेरी पहचान
कितना दर्द समेटे हूं मैं
जिसका नहीं किसी को ज्ञान।
नहीं चाहिए मुझको धन-दौलत
बस चाहूं थोडा अपनापन
दे दो मुझको मेरी पहचान
केवल कोई यंत्र नहीं मैं
स्वतंत्र हूं पर स्वतंत्र नहीं मैं
हां, बिल्कुल अकेली हूं मैं
हूं एक अबूझ पहेली मैं....?
Hakikat
जवाब देंहटाएंसादर आभार प्रिय श्वेता जी, आप सबका स्नेह ऐसे ही बना रहे🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसादर आभार 🙏
हटाएंनारी के अस्तित्व का अंतर द्वंद बखूबी ऊभर कर आया है रचना मे।
जवाब देंहटाएंसुंदर अप्रतिम।
सादर आभार 🙏
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर आभार 🙏
हटाएंआप सभी स्नेहीजनों को सादर आभार 🙏 🙏 🙏
जवाब देंहटाएंअपनी रचना के ज़रिये सच बयान किया आपने
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रेवा जी सादर आभार
हटाएंधन्यवाद आदरणीय
जवाब देंहटाएंनहीं चाहिए मुझको धन-दौलत
जवाब देंहटाएंबस चाहूं थोडा अपनापन
दे दो मुझको मेरी पहचान
केवल कोई यंत्र नहीं मैं
स्वतंत्र हूं पर स्वतंत्र नहीं मैं---
बहुत ही मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ अभिलाषा जी -- हर नारी की भीतरी वेदना यही है | आजाद हो कर भी उसके कर्तव्य उसे आजादी का आभाष कहाँ करने देते हैं | सस्नेह --
सादर आभार 🙏 रेणु जी व्यथा की कथा है ये
हटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंएक अबूझ पहेली हूँ मैं...
वाह!!!
सादर आभार 🙏 सुधा जी नारी का मन कभी कोई कहां समझ पाया है।
हटाएंVery nice
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