" प्रेम ही सत्य है"

प्रेम ही सत्य है
  प्रेम ही शिव है
   प्रेम ही सुंदर है
     प्रेम ही सार है ।
प्रेम ही सुगंध है
    प्रेम ही तरंग है
     प्रेम में रचा-बसा
      मनुज का संसार है ।
 प्रेम ही अतुल्य है
    प्रेम ही अमूल्य है
      प्रेम ही शाश्वत है
      साक्षात निराकार है।
प्रेम में त्याग है
 प्रेम में समर्पण है
  प्रेम ही जगती का जीवन
   प्रेम ही सगुण साकार है ।
 प्रेम में रचे बसे
  पंच महाभूत हैं
   प्रेम ही से सारी
      सृष्टि उद्भूत है।
प्रेम के ढाई आखरों में
 त्रिदेवों की शक्तियां समाई हैं
  महापुरूषों की वाणी
   मानवीय महानता समाई है ।
प्रेम के ढाई आखर
 वेदों का सार हैं
   गीता का ज्ञान है
    कुरान की पुकार है ।
इन आखरों में छिपा
  ईश्वरीय प्रकाश है
   जीवन की आस है
    आस्था और विश्वास है।
इन आखरों के ज्ञान से
 बना मनुज महात्मा
    इनसे रहित मनुज
       बन गया दुरात्मा।
प्रेम के ढाई आखर ही
    इस सृष्टि का मूल हैं
      इनसे रहित मनुज जीवन
          निस्सार और निर्मूल है।

****अभिलाषा चौहान******




टिप्पणियाँ

  1. वाह वाह आदरणीया बहुत सुंदर
    "प्रेम के ढाई आखर ही
    इस सृष्टि का मूल हैं
    इनसे रहित मनुज जीवन
    निस्सार और निर्मूल है।"
    वाह 👌
    सादर नमन सुप्रभात

    जवाब देंहटाएं
  2. सादर आभार आदरणीया आंचल जी आपकी प्रतिक्रिया ने उत्साहित किया

    जवाब देंहटाएं
  3. जी सच ही है आदरणीया प्रेम से ही संसृति है... बेहतरीन रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह बहुत सुन्दर प्रेम की आमूलचूल व्याख्या करती सुंदर रचना ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार कुसुम जी आपकी प्रेरणास्पद प्रतिक्रिया पाकर अच्छा लगा

      हटाएं

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