दीपक

वर्तिका-तेल करते दीप का निर्माण
इनके बिना दीप अस्तित्व विहीन
इनका संयोग करता दीप को परिपूर्ण
दे जग को प्रकाश
कर दूर तिमिर-गहन अंधकार पारावार
दीप बन जीवन प्रतीक, कर मुकुलित मन
आशा की किरण जगाता है।
लेकिन दीप तभी दीप है,
जब वर्तिका और तेल से परिपूर्ण हो
दीप देता है संदेश मनुष्य को
प्रतिपल प्रतिक्षण
देख मुझे जल मेरी तरह
मानवता का दे संदेश
पढा मनुष्यता का पाठ
कर औरों के लिए अर्पण
सच, तभी तू सच्चा मानव है
सीख दीप से लै सदैव
स्वयं जलता है, जल-जल कर राह दिखाता है
कर अपना समर्पण
एक अमिट इतिहास रचाता है
यह दीप है प्रतीक
अनंत इच्छाओं का
आस्थाओं, भावनाओं और विश्वास का
उम्मीद की किरण है
जीवन की उमंग है
झिलमिलाती हुई यह दीप की लौ
दीप जो सदा जलता है औरों के लिए
बनो दीप रहो दीप्त
फैला दो प्रकाश
मिट जाए अंधकार
छाए हर्ष चहुंओर
सुंदर अति सुंदर
बन जाए अपना संसार

(अभिलाषा चौहान)

टिप्पणियाँ

  1. सचमुच दीप संसार में अप्रितम प्रेरणा पुंज है | स्वयं जलकर दूसरों का पथ प्रकाशित करने का हुनर जो रखता है | सुंदर प्रेरक रचना | हार्दिक शुभकामनायें प्रिय अभिलाषा जी |

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