मेरा घर कुछ कहता है मुझसे.....
आज कल भारतीय परिवारों का स्वरूप कुछ बदल गया है या कहें कि परिवारों के बिखरने ने घरों की परिभाषा बदल दी है। उसी पर कुछ शब्द प्रस्तुत कर रही हूं.....
मेरा घर कुछ कहता है मुझसे..
बनाना है यदि मकान को घर,
तो रहना सीखो
प्यार से...
जीना सीखो
दूसरों के लिए....
सीखो-त्याग समर्पण,
हंसना-हंसाना...
जिन्हें भुला दिया है तुमने,
बांट दिया है घर को,
सरहदों में......!
बांध दिया है रिश्तों को ,
स्वार्थ में ...?
कर दिया है अनदेखा
संबंधों को..... ।
रह गई है नीरसता
बन गया है जेल...!
स्वार्थ की हथकडियां
अहम् की बेड़ियाँ
झुकने नहीं देती..।
और तुम बनाना चाहते हो
मकान को घर ?
उठो सोचो क्या खोया ,
औ क्या पाया है तुमने ?
दरकते रिश्ते
सरकते सुख
खंडहर जीवन
अमिट सूनापन
कुछ भी तो नहीं है
पास तुम्हारे......?
जीना सीखो
जैसे कि पहले जिया करते थे
जहां रिश्ते खिलते थे..!
स्नेह फलता था
जीवन हंसता था
आज जीवन मर रहा है
नफरत जी रही है.....
घर मकान न बन जाए
उससे पहले
चलो जी लें कुछ पल
अपने लिए
अपनों के लिए.... ।(अभिलाषा) 🙏🙏
Nice
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कपिल जी
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुराधा जी
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