बरखा अब तो आओ न....!

तपती धरती तपता अंबर
बरखा अब तो आओ न।
गरम हवा के झोंको से,
हमको अब तो बचाओ न
आग उगलता सूरज देखो
तन को कैसे झुलसाता है?
तडप रहे है सभी जीव,
कोई चैन कहां पर पाता है।
रूठ गई हो जबसे तुम,
शीतलता भी चली गई,
प्यासी धरती राह निहारे,
मन न अब हरसाता है !
नित मेघों की राह निहारे,
कोयल देखो कूक रही,
मोर पपीहा और दादुर भी,
राह तुम्हारी तकतें हैं,
कहां गई हो बरखा बोलो,
हमसे तुम क्यो रूठ गईं,
कैसे तुम्हें मनाएं बरखा,
जो खुशियां तुम बरसाओ न,
बरखा अब तो आओ न ।
आके नभ पर छा जाओ न,
छाई धुंध जो इस धरती पर,
आकर उसे मिटाओ न,
सूख गए हैं कंठ हमारे,
उनकी प्यास बुझाओ न,
जीवन नवजीवन देनेवाली,
अब तो आ भी जाओ न,
बरखा अब तो आओ न.....! (अभिलाषा)

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