"आज फिर व्यथित है मन"

आज फिर व्यथित है मन
फिर याद आए वे पल-छिन
जिन्हें हम कभी भुला न सके
वो बचपन के दिन......
वो अपनापन
वो लडना - झगड़ना रूठना-मनाना
एक आवाज पर तुम्हारा
दौड़े चले आना
जिसके लिए तरसता है मन
आज फिर व्यथित है मन ... ।

सुख-दुःख के साथी थे हम
दूर होकर भी कितने पास थे हम
सबकी खुशी में खुश रहने वाले
कितने प्यारे और अनोखे थे तुम
फिर कैसे चल दिए अकेले
अनंत यात्रा पर. ...   !
हम सबका साथ छोड़कर
हम सबका दिल तोडकर
न कुछ कहा न कुछ सुना
बड़े धोखेबाज निकले तुम
आज फिर व्यथित है मन ... ।

ऐसे भी भला जाता है कोई
बताओ कब हमारी आंखें न रोई
खोजती हैं बस तुम्हें यादों के खंडहर में
पर नहीं दिखते तुम कहीं.....
बस याद आते हो बहुत याद आते हो
दिल तब खून के आंसू रोता है
ऐसे भी भला कोई अपनों से दूर होता है
आज फिर व्यथित है मन
तन्हा मन तन्हा जीवन ।     (अभिलाषा)

भाई तुम्हें समर्पित मेरे व्यथित मन की पीड़ा 😢 😢 😢 😢 😢 😢 

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