.... बंजर जमीं.....?

 रिश्तों की जमीं अब बंजर हो गई है,
नहीं उगती वहां कोई फसल
नहीं खिलते वहां अब फूल 🌸
हर तरफ हैं बस कांटे ही कांटे
खत्म हो गई है उर्वरता .....
नहीं बचा उसमें जीवन,
नहीं फूटता अब कोई अंकुर ....
प्यार का*****सद् भाव का
अपनत्व का ****त्याग का,
अब तो बस हर तरफ हैं कांटे
बड़ा सम्हाल कर चलना 🚶 पडता है
कहीं कोई कांटा न चुभ जाए कहीं,
बड़ा दर्द होता है,
जब चुभता है कोई कांटा
लगता है दिल पर
एक तमाचा,
क्यों ऐसा हुआ
क्यों इतने कांटे है ?
जो दिखते नहीं
चुभते बहुत है ं
स्वार्थ के ...
अविश्वास के ...
धोखे के....
वैमनस्य के ....
क्यों मर गई
धरती की वह गंध
क्यों हो गई धरती बंजर
क्यों मर गए हैं रिश्ते
क्यों फूल अब नहीं खिलते ?।?
क्या पता है किसी को.....
बता दो मुझे भी....
है मेरी अभिलाषा ....
बता दे कोई ...... 🤔🤔🤔🤔🤔

टिप्पणियाँ

  1. मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति। बाग़ बन जाता है वीराना भी होी जब कुदरत की मेहरबानियां।
    बधाई एवं शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  2. मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति अभिलाष जी ।
    संवेदनाएं समाप्त हो रही है इसलिए रिश्तों की जमी बंजर हो रही है ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद आदरणीया कुसुम जी सराहना के लिए

      हटाएं

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