कैसे अपनी प्यास बुझाओ

आग लगी हो जहां वनों में कैसे खिलते पुष्प बताओ सूखे हो जब कूप बावड़ी कैसे अपनी प्यास बुझाओ। थोथे हो गए वेद-शास्त्र भी धर्म ने पहना जाति चोला नीम-करेला चढ़ा जीभ पर जिसने भी अपना मुख खोला पुरखे भी सिर अपना धुनते बात भला कैसे समझाओ सूखे हो जब कूप बावड़ी कैसे अपनी प्यास बुझाओ। मंगल-चांद हकीकत बनते धरती का सब रुप उजाड़ा अलग-अलग चौपायों का ये समाज अब बनता बाड़ा गीता-रामायण की बातें मूढ़ों को कैसे सिखलाओ सूखे हो जब कूप बावड़ी कैसे अपनी प्यास बुझाओ। जीवन की ये बहती धारा प्रतिबंधित है अवरोधों से सपनों के जब पंख कटे हों क्या मिलता है नव शोधों से राख बने जब खुशियां सारी गीत जीत के कैसे गाओ। सूखे हो जब कूप बावड़ी कैसे अपनी प्यास बुझाओ। वर्तमान कुंठित तरुणों का हैं भविष्य की बातें झूठी धक्के मिलते हर चौबारे बोलो इनकी किस्मत फूटी मत्थे इनके दोष मढ़ो फिर अपनी ग़लती रोज छुपाओ। सूखे हो जब कूप बावड़ी कैसे अपनी प्यास बुझाओ। बहुत हुई ये ओछी बातें रख लो ये खैरात तुम्हारी इन झूठे सपने-वादों से भड़क रही मन में चिंगारी नींव तुम्हारी अब हिलती है सच्चाई अब तो दिखलाओ...