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कैसे अपनी प्यास बुझाओ

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आग लगी हो जहां वनों में  कैसे खिलते पुष्प बताओ सूखे हो जब कूप बावड़ी  कैसे अपनी प्यास बुझाओ। थोथे हो गए वेद-शास्त्र भी धर्म ने पहना जाति चोला नीम-करेला चढ़ा जीभ पर जिसने भी अपना मुख खोला पुरखे भी सिर अपना धुनते बात भला कैसे समझाओ सूखे हो जब कूप बावड़ी  कैसे अपनी प्यास बुझाओ। मंगल-चांद हकीकत बनते धरती का सब रुप उजाड़ा अलग-अलग चौपायों का ये समाज अब बनता बाड़ा गीता-रामायण की बातें  मूढ़ों को कैसे सिखलाओ सूखे हो जब कूप बावड़ी  कैसे अपनी प्यास बुझाओ। जीवन की ये बहती धारा प्रतिबंधित है अवरोधों से सपनों के जब पंख कटे हों क्या मिलता है नव शोधों से राख बने जब खुशियां सारी गीत जीत के कैसे गाओ। सूखे हो जब कूप बावड़ी  कैसे अपनी प्यास बुझाओ। वर्तमान कुंठित तरुणों का हैं भविष्य की बातें झूठी धक्के मिलते हर चौबारे बोलो इनकी किस्मत फूटी मत्थे इनके दोष मढ़ो फिर अपनी ग़लती रोज छुपाओ। सूखे हो जब कूप बावड़ी  कैसे अपनी प्यास बुझाओ। बहुत हुई ये ओछी बातें रख लो ये खैरात तुम्हारी इन झूठे सपने-वादों से भड़क रही मन में चिंगारी  नींव तुम्हारी अब हिलती है सच्चाई अब तो दिखलाओ...

सरसी छंद विधान

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  सरसी छंद विधान  सरसी छंद चार चरणों का एक विषम मात्रिक छंद है । इस छंद में चार चरण और 2 पद होते हैं । इसके विषम चरणों में 16-16 मात्राएं और सम चरणों में 11-11 मात्राएं होती हैं । इस प्रकार इस छंद में 27 मात्राएं होती हैं। । सरसी छंद के विषम चरण में चौपाई के समान 16 मात्रा होती हैं और यह चौपाई के नियमों के अनुरूप होती है ।वहीं इसका सम चरण दोहा के सम चरण के  समान होता है,दोहा के सम चरण  में 11 मात्राएं और अंत में गुरु लघु होता है। 16/11/चरणान्त21  "कृष्ण स्तुति " केशव माधव मदन मुरारी,तुम ही मेरे प्राण। अच्युत मोहन गिरधर नागर,कर दो सबका त्राण। श्यामल गात पीत पट शोभित, मोर मुकुट सज शीश। अधरों पर मुरली राजत है,जय  जय जय जगदीश । आनन पंकज नेत्र चंचला,काले घूंघर बाल। उर बैजंती माल सुशोभित,चंदन  शोभित भाल। भक्त वत्सला गिरधर कान्हा, करते बेड़ा पार । उँगली पर गोविन्द लिये थे, गोवर्धन का भार। दानव-दल का करते मर्दन,और  रचाते रास। धेनु चरावें वेणु बजावें,राधा के उर आस। नंद-यशोदा हर्षित होते,कैसा  अद्भुत लाल। माखन चोर फोड़ता मटकी,गोपीं हो बेहाल। पांचाली के...

लहू के गीत...??

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सीमाएं नित लिखती रहतीं कितने लहू के गीत इन गीतों में छलक रही है  बस आँसू और प्रीत बिलख-बिलख कर पूछे चूड़ी  क्या था मेरा दोष सीमाओं को बांधा किसने उठता मन में रोष ममता तड़पे राह निहारे  उजड़ी उसकी गोद और बुढ़ापा दुष्कर बनता वैरी बन गया मोद दूर गया नैनों का तारा  होता मन भयभीत  दुख के बादल घिरकर आए कैसी है यह रीत आंचल में अब किसे छिपाए झर-झर झरते नैना सूनी शैया करवट बदले छिन गया मन का चैना आस मिटी और टूटी लाठी सागर मन लहराए यादों के जंगल में घूमें सीने से उसे लगाए उजड़ा आंगन सूनी देहरी मौन बना है मीत सब मौसम बेरंग हुए हैं  गर्मी वर्षा शीत ढूंढ रही वह अपना छौना सूना है आकाश तारे भी मद्धम दिखते हैं  चंदा हुआ उदास सपने धूसर सब बेरंगे कौन भला ये जाने जिसकी पीड़ा वो ही भुगते जग तो लगा भुलाने खुशियों के सब पुष्प झरे मुख पर छाया पीत जग को केवल प्यारी लगती अपनी-अपनी जीत अभिलाषा चौहान 

कुछ अनकही.....??

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  १."सांप" आस्तीनों में पलते सांपों ने चुरा ली सांप की पहचान  उनके दंश से बचना अब नहीं आसान  सांपों की इस प्रजाति से हुए सांप भी हैरान...!! ********************** २."भेडिया" भेड़िये अब गलियों में घूमते लगा भेड़ का मुखौटा शिकार की तलाश में , गली-गली घूमते इन भेड़ियों को  पहचान पाना है मुश्किल ! भेड़ को भेड़िया बनने में  नहीं लगती देर हे प्रभु कैसा हे अंधेर..!! ********************** ३."गिद्ध" ताक में गिद्ध घर की मुंडेरों,गली-चौराहों पर चीर-फाड़ करने को...!! मुर्दे भी हैं बेचैन इन गिद्धों से बचना है कठिन मांस नोचने को बेताब  तहजीब के दुश्मन ये गिद्ध...!! ********************** ४."कौवे" आजकल कौवे  बहुत कांव-कांव करते हैं  कानों में चुभते कर्कश स्वर, बेवजह शोर मचाते इन कौवों को समझ नहीं आता कि शोर मचाने से कुछ नहीं होता हासिल  लानी होगी स्वर में मिठास तभी जीतोगे दिल तभी बनोगे खास....!! ********************* ५."गधे" गधे बोझ ढ़ोते-ढ़ोते थक चुके हैं  अब कुम्हार गधों की सुनता है  स्वयं गधा बनकर गधों के अनुरूप चलता है  गधे अपनी ताकत पहच...