कैसे अपनी प्यास बुझाओ







आग लगी हो जहां वनों में 

कैसे खिलते पुष्प बताओ

सूखे हो जब कूप बावड़ी 

कैसे अपनी प्यास बुझाओ।


थोथे हो गए वेद-शास्त्र भी

धर्म ने पहना जाति चोला

नीम-करेला चढ़ा जीभ पर

जिसने भी अपना मुख खोला

पुरखे भी सिर अपना धुनते

बात भला कैसे समझाओ

सूखे हो जब कूप बावड़ी 

कैसे अपनी प्यास बुझाओ।


मंगल-चांद हकीकत बनते

धरती का सब रुप उजाड़ा

अलग-अलग चौपायों का

ये समाज अब बनता बाड़ा

गीता-रामायण की बातें 

मूढ़ों को कैसे सिखलाओ

सूखे हो जब कूप बावड़ी 

कैसे अपनी प्यास बुझाओ।


जीवन की ये बहती धारा

प्रतिबंधित है अवरोधों से

सपनों के जब पंख कटे हों

क्या मिलता है नव शोधों से

राख बने जब खुशियां सारी

गीत जीत के कैसे गाओ।

सूखे हो जब कूप बावड़ी 

कैसे अपनी प्यास बुझाओ।


वर्तमान कुंठित तरुणों का

हैं भविष्य की बातें झूठी

धक्के मिलते हर चौबारे

बोलो इनकी किस्मत फूटी

मत्थे इनके दोष मढ़ो फिर

अपनी ग़लती रोज छुपाओ।

सूखे हो जब कूप बावड़ी 

कैसे अपनी प्यास बुझाओ।


बहुत हुई ये ओछी बातें

रख लो ये खैरात तुम्हारी

इन झूठे सपने-वादों से

भड़क रही मन में चिंगारी 

नींव तुम्हारी अब हिलती है

सच्चाई अब तो दिखलाओ।

सूखे हो जब कूप बावड़ी 

कैसे अपनी प्यास बुझाओ।


तुम अटके हो जाति वाद में 

धर्म बना बस एक खिलौना

टांग खिंचाई करते रहते

बीती बातों का ले रोना

क्या बदला है क्या बदलोगे

दर्पण खुद को आज दिखाओ

सूखे हो जब कूप बावड़ी 

कैसे अपनी प्यास बुझाओ।


©️अभिलाषा चौहान 




टिप्पणियाँ

  1. वाह अभिलाषा जी ! कविता तो आपकी पोल-खोल वाली और भूकंप मचाने वाली है पर मेरी दोस्ताना सलाह यह है कि आप अभी से अपनी एंटीसिपेटरी बेल के लिए किसी अच्छे वक़ील से संपर्क कर लीजिए.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. Gopesh Mohan Jaswal सर शुभ प्रभात 🙏आपका साथ है ना, फिर काहे का डर,अपना आशीर्वाद बनाए रखियेगा। सहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर 🙏🙏

      हटाएं
  2. Bahut khub Abhilasha ji, kitni saralta se tiksha baan maare hain lafzon se, bahut khub likha hai!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर

      हटाएं
  3. लाज़वाब अभिव्यक्ति अभिलाषा जी।
    विद्यार्थियों के भविष्य से खिलवाड़ करना अक्षम्य अपराध है।
    सादर।
    --------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २अगस्त २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार प्रिय श्वेता जी, आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर

      हटाएं
  4. मंगल-चांद हकीकत बनते
    धरती का सब रुप उजाड़ा
    अलग-अलग चौपायों का
    ये समाज अब बनता बाड़ा
    गीता-रामायण की बातें

    मूढ़ों को कैसे सिखलाओ
    सूखे हो जब कूप बावड़ी
    कैसे अपनी प्यास बुझाओ।

    शानदार व्यंग
    दोहरे चेहरे वाले समाज की दुखती रग पकड़ी है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर

      हटाएं
  5. गंभीर विषयों को उठाती गहन रचना ।आपकी लेखनी की धार बहुत गहरी है सखी !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर

      हटाएं
  6. उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर

      हटाएं
  7. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर

      हटाएं
  8. उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीया आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर

      हटाएं
  9. वाह! प्रिय सखी ,क्या बात है ..बहुत ही खूबसूरती के साथ शब्दों के बाण चलाते हुए शानदार बात कह दी आपनें ..।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर

      हटाएं
  10. काव्यमय रूप में दो टूक सत्य कहा है आपने। दर्पण सरीखी है आपकी यह कविता।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर

      हटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सवैया छंद प्रवाह

जिसे देख छाता उल्लास

सवैया छंद- कृष्ण प्रेम