सवैया छंद- कृष्ण प्रेम
1.भक्त की प्रार्थना
माधव मोहन श्याम सदा तुम,भक्तन के बनके रखवारे।
हे मुरलीधर प्राण बसे तुम,जीवन के बनके उजियारे।
दास कहे मनकी सुनलो अब,मोह फँसे हम हैं दुखियारे।
मीन बिना जल के तड़पे अब,घेर रहे तम बादल कारे।
2.कृष्ण सौंदर्य
पट पीत सजे वनमाल गले,अधरों पर चंचल हास्य सखी।
सिर मोर पखा लड़ियाँ लटके,मुरली कर में अभिराम दिखी।
मन मोह लिया सुध भूल गई,नयना तकते अविराम सखी।
यमुना तट धेनु चरावत वे,छवि नैनन से दिन-रात लखी।
अभिलाषा चौहान
बहुत सुन्दर अभिलाषा जी !
जवाब देंहटाएंआपका कृष्ण-सौन्दर्य-चित्रण तो रसखान की याद दिला रहा है.
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंभक्ति-रस में सराबोर कर दें, ऐसे सवैये रचे हैं आपने अभिलाषा जी। अद्भुत प्रतिभा है आपमें।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (25-06-2021) को "पुरानी क़िताब के पन्नों-सी पीली पड़ी यादें" (चर्चा अंक- 4106 ) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
बहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही सुंदर आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंसादर
भक्ति रस में सराबोर बहुत ही सुंदर सृजन सखी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सवैया
जवाब देंहटाएंभक्तिरस से सरोबोर सवैये.. सुंदर..
जवाब देंहटाएंभक्ति रस से सराबोर रचना, बहुत शानदार रचना
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
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