लेती ज्यूँ आकार प्रिये
लोहा गर्म पिघलता जैसे
ठंड़ा नव आकार लिये
स्वर्ण तपे कुंदन बन दमके
रमणी ज्यूँ श्रृंगार किये।
भाव तरंगित होते हिय में
उड़े कल्पना कानन में
शब्द-शब्द पुष्पों से महके
अर्थ प्राण उर आनन में
चली चेतना चुनने मोती
सीपी ने मुख खोल दिये
स्वर्ण तपे कुंदन बन दमके
रमणी नव श्रृंगार किये
लोहा गर्म---------------।।
मन तुरंग सा दौड़ रहा है
जग के कोने-कोने में
देख दशा अति अकुलाता है
कविता लगता बोने में
चाक चले जब गीली मिट्टी
लेती ज्यूँ आकार प्रिये
स्वर्ण तपे कुंदन बन दमके
रमणी ज्यूँ श्रृंगार किये।
लोहा गर्म-----------------।।
हिय अंतस में आस जगाए
राह नई यूँ दिखलाती
सुंदर-सुंदर लगता जीवन
सपनों की पढ़ता पाती
ताना-बाना जोड़-जोड़ कर
जगजीवन आधार दिए।
स्वर्ण तपे कुंदन बन दमके
रमणी ज्यूँ श्रृंगार किये।
लोहा गर्म----------------।।
अभिलाषा चौहान
बेहतरीन कविता। आपकी श्रेष्ठ रचनाओं में एक मानी जाएगी यह।
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई आदरणीया अभिलाषा जी।
आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हुई आदरणीय 🙏 आपको रचना अच्छी लगी यह जानकर मन प्रसन्न हुआ। बहुत-बहुत आभार आदरणीय 🙏🙏 सादर
हटाएंबहुत सुन्दर नव गीत .... मन तो हमेशा ही तुरंग बना रहता .... न जाने कहाँ कहाँ घूम आता ...
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हुई आदरणीया 🙏🙏 उत्साहवर्धन के लिए सहृदय आभार
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज शनिवार १८ अप्रैल २०२१ को शाम ५ बजे साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
सहृदय आभार सखी श्वेता 🙏🌹 सादर
हटाएंअति प्रशंसनीय गीत रचा है आपने अभिलाषा जी।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हुई 🙏🙏 सहृदय आभार आदरणीय 🙏🙏
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 19-04 -2021 ) को 'वक़्त का कैनवास देखो कौन किसे ढकेल रहा है' (चर्चा अंक 4041) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सहृदय आभार आदरणीय 🙏🙏 सादर
हटाएंअत्यंत सुन्दर भावों से सजा बहुत सुन्दर नवगीत अभिलाषा जी!
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी 🌹🙏 सादर
हटाएं
जवाब देंहटाएंहिय अंतस में आस जगाए
राह नई यूँ दिखलाती
सुंदर-सुंदर लगता जीवन
सपनों की पढ़ता पाती
ताना-बाना जोड़-जोड़ कर
जगजीवन आधार दिए।
स्वर्ण तपे कुंदन बन दमके
रमणी ज्यूँ श्रृंगार किये।..सुंदर भावों की अनूठी रचना ।
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत सृजन 👌
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंचली चेतना चुनने मोती...सुन्दर शब्दों का चयन
जवाब देंहटाएंसुन्दर लेखन!