भाव शून्य में ठहर गए


डोल उठी जीवन की नैया 

सुख के सारे पहर गए

अंधकार ने डेरा डाला

झेल रहे हैं कहर नए।


रोग चाटता दीमक जैसे

कौन सुने मन की बातें

अपने-अपने दुख में उलझे

काल करे कितनी घातें।

टूट रही खुशियों की माला

मनके सारे छहर गए।


कौड़ी-कौड़ी जोड़-जोड़ कर

महल बनाया सपनों का

एक बंवडर आया ऐसा

रूप दिखाया अपनों का

चक्रवात अंतस में उठते

भाव शून्य में ठहर गए।


गंधहीन सब पुष्प हुए अब

धूप चुभोती तन में शूल

उजड़े-उजड़े कानन सारे

चाँद गया है हँसना भूल

काले बादल घिर कर आते

देख काँप हम सिहर गए।


अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'


टिप्पणियाँ

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  2. बहुत सुंदर रचना,
    रोग चाटता दीमक जैसे
    कौन सुने मन की बातें
    अपने-अपने दुख में उलझे
    काल करे कितनी घातें।
    टूट रही खुशियों की माला
    मनके सारे छहर गए।

    कितनी खूबसूरत पंक्तियां हैं, हर मन का दर्द बयां करती हैं,

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. रोग चाटता दीमक जैसे

    कौन सुने मन की बातें

    अपने-अपने दुख में उलझे

    काल करे कितनी घातें।

    टूट रही खुशियों की माला

    मनके सारे छहर गए।

    गहरी सोच को प्रस्तुत करती रचना। अद्भुत।

    जवाब देंहटाएं
  4. कौड़ी-कौड़ी जोड़-जोड़ कर

    महल बनाया सपनों का

    एक बंवडर आया ऐसा

    रूप दिखाया अपनों का

    चक्रवात अंतस में उठते

    भाव शून्य में ठहर गए।

    वाह!!!
    लाजवाब नवगीत बहुत ही हृदयस्पर्शी।

    जवाब देंहटाएं
  5. रोग चाटता दीमक जैसे

    कौन सुने मन की बातें

    अपने-अपने दुख में उलझे

    काल करे कितनी घातें।

    टूट रही खुशियों की माला

    मनके सारे छहर गए।..वाह! बेहतर सृजन दी

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  6. सहृदय आभार आदरणीय 🙏🙏 सादर

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