जड़वत देखें सभी दिशाएँ

भग्नावशेष चीख-चीख कर
कहते अपनी कई कथाएँ
दमित मौन से उपजे पीड़ा
जड़वत देखें सभी दिशाएँ।।

खंड-खंड पाषाण सुनाते
हाहाकार मचा कब कैसा
कालचक्र ने खेली चौसर
लगता मानव पासे जैसा
अधर्म-अनीति के बिखरे शव
सुना रहे अपनी गाथाएँ
दमित मौन से उपजे पीड़ा
जड़वत देखें सभी दिशाएँ।।

तिनके से मानव ने जब-जब
लाँघी थी लक्ष्मण रेखाएँ।
साँस घुटी तब-तब भूमा की
प्रलय-प्रभंजन शोर मचाएँ
युग अतीत में ढलते-ढलते
भूले अपनी रोज गिनाएँ
दमित मौन से उपजे पीड़ा
जड़वत देखें सभी दिशाएँ।।


सूखे आँसू की लीकों में
जौहर की है छुपी कहानी
लहू नहायी प्यासी धरती
आँचल में देखे वीरानी
खेल नियति भी हार चुकी है
विडम्बनाएं चिह्न दिखाएँ
दमित मौन से उपजे पीड़ा
जड़वत देखें सभी दिशाएँ।।

अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक






टिप्पणियाँ

  1. तिनके से मानव ने जब-जब
    लाँघी थी लक्ष्मण रेखाएँ।
    साँस घुटी तब-तब भूमा की
    प्रलय-प्रभंजन शोर मचाएँ
    युग अतीत में ढलते-ढलते
    भूले अपनी रोज गिनाएँ
    दमित मौन से उपजे पीड़ा
    जड़वत देखें सभी दिशाएँ।।
    वाह! विलक्षण अभिव्यक्ति!!! आभार और बधाई!!!!

    जवाब देंहटाएं
  2. सादर नमस्कार,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार
    (12-06-2020) को
    "सँभल सँभल के’ बहुत पाँव धर रहा हूँ मैं" (चर्चा अंक-3730)
    पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।

    "मीना भारद्वाज"

    जवाब देंहटाएं
  3. सहृदय आभार सखी 🌹🌹 सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह वाह बहुत सुन्दर कविता . भाव भाषा प्रवाह सब कुछ सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  5. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-6-2020 ) को "साथ नहीं कुछ जाना"(चर्चा अंक-3734) पर भी होगी, आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
  6. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-6-2020 ) को "साथ नहीं कुछ जाना"(चर्चा अंक-3734) पर भी होगी,

    आप भी सादर आमंत्रित हैं।

    ---

    लिंक खुलने में समस्या हुई इसकेलिए क्षमा चाहती हूँ ,मैंने अब सुधार कर दिया हैं।

    कामिनी सिन्हा



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  7. वाह !बहुत सुंदर सृजन आदरणीय दीदी .

    जवाब देंहटाएं

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