स्वतंत्र हूँ मैं

स्वतंत्र हूँ मैं,
हाँ बिल्कुल स्वतंत्र
कुछ भी कर सकता हूँ।
राह के रोड़े
चुटकियों में हटा सकता हूँ
ये प्रकृति ,
मेरे हाथों का खिलौना है
खेल सकता हूँ मनचाहे खेल।
मुझे पसंद हैं
वो पहाड़ जो मैंने स्वयं
निर्मित किए हैं कूड़े के ढेर से।
साफ-सफाई मुझे कहां भाती है।
पक्षियों के नीड़ो में
मेरा ही बसेरा है
आसमान को काले धुएँ से घेरा है।
ये देश मेरा है,
मुझे पूर्ण स्वतंत्रता है
दीवारों पर चित्रकारी करने की।
जाति-धर्म,सम्प्रदाय
के नाम पर इसे बाँट सकता हूँ।
अपने सुख
के लिए औरों के घरों में
आग लगा सकता हूँ।
नीति नियम
स्वयं ही बनाता हूँ
भ्रष्टाचार से काम चलाता हूँ।
मैं स्वतंत्र हूँ
परंपराओं से मुझे बैर है।
बंदिशों से लगता डर है।
वृद्धाश्रम का
चलन तभी तो बढ़ा है
मेरा सुख सबसे बड़ा है।
मेरी स्वतंत्रता सबसे बड़ी है
उखाड़ी वो कील जो सुख में गड़ी है।
पाप-पुण्य मुझे अब नहीं सताते हैं।
स्वर्ग-नर्क भी प्राप्त करने आते हैं।

अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक

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