आस कब रहती अधूरी


हो तिमिर कितना भयंकर
आस से हो भले दूरी
चमक जुगनू की सिखाती
हार से हो जीत पूरी।।

हार कर चुप बैठ जाना
कबूतर सी बंद आँखें
मुँह छुपा कर भाग जाना
तने से ज्यों विलग शाखें
है नहीं मानव का लक्षण
साहसी होना जरूरी
चमक-------------।।

बिगड़ती-बनती सँवरती
जो उठें जलधि में लहरें
नाश की चिंता करें कब
एक पल को भी न ठहरें
तोड़ती तटबंध आकर
आस कब रहती अधूरी
चमक--------------।।

नाश से निर्माण का क्रम
चक्र चलता ये निरंतर
बिखरते हैं श्वांस मोती
लगे शून्य जीवन कांतर
सृष्टि का विस्तार होगा
रिक्तपन है फिर जरूरी
चमक जुगनू की सिखाती
हार से हो जीत पूरी।।


अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक

टिप्पणियाँ

  1. बिगड़ती-बनती सँवरती
    जो उठें जलधि में लहरें
    नाश की चिंता करें कब
    एक पल को भी न ठहरें
    तोड़ती तटबंध आकर
    आस कब रहती अधूरी
    वाह!!!!
    लाजवाब नवगीत

    जवाब देंहटाएं
  2. बिगड़ती-बनती सँवरती
    जो उठें जलधि में लहरें
    नाश की चिंता करें कब
    एक पल को भी न ठहरें
    तोड़ती तटबंध आकर
    आस कब रहती अधूरी
    चमक--------------।।
    वाह !बेहतरीन सृजन आदरणीया दीदी

    जवाब देंहटाएं
  3. चमक जुगनू की सिखाती
    हार से हो जीत पूरी
    सुन्दर सकारात्मक सोच

    जवाब देंहटाएं
  4. बिगड़ती-बनती सँवरती
    जो उठें जलधि में लहरें
    नाश की चिंता करें कब
    एक पल को भी न ठहरें
    तोड़ती तटबंध आकर
    आस कब रहती अधूरी

    बहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना सखी ,सादर नमन

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