दुविधा

 टूटे पँखों को लेकर के,कैसे जीवन जीना हो
आशा का घट हो जब रीता दुख में हर लम्हा है बीता।
बंद हुए दिल के दरवाजे,कैसे तम फिर झीना हो।
टूटे पंखों को लेकर के,कैसे जीवन जीना हो।
प्रेम की बातें जग न जाने,बस पैसे को अपना माने
खड़ी अकेली बस मैं सोचूं,कैसे पार उतरना हो
टूटे पंखों को लेकर के कैसे जीवन जीना हो।

जीवन जैसे भूल भुलैया,बीच धार में जीवन नैया।
मिला न कोई साथी ऐसा,इसका कौन खिवैया हो।
टूटे पंखों को लेकर के,कैसे जीवन जीना हो।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक








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