वक्त की इबारतें

जिंदगी के कोरे पन्नों पर,
वक्त ने लिखीं इबारतें।
दुःख की स्याही ने,
उकेरे चित्र अनेक।
सुख ने लिखीं ,
कविताएं मनभावन।
आनंद ने गाए ,
मंगलगीत अनोखे।
सजने लगी किताब,
भरने लगे पन्ने...!!
बनने लगा,
कर्मों का बही-खाता।
अच्छे-बुरे का,
होने लगा हिसाब।
खाली पन्नों पर
होने लगा गुणा-भाग।
अनुभव बना खजाना,
अनुभव की रोकड़.!
जिंदगी के पन्नों पर,
बिखरी बेहिसाब!!
बाजार में भी नहीं
मिलता ये,
मांगने से भी नहीं
मिलता ये।
मिलता है जिंदगी के
पन्नों में,
उस बही-खाते में,
जिसे जिंदगी की ठोकरें,
लिखती हैं ...
अपनी ही तरह।।

अभिलाषा चौहान

टिप्पणियाँ

  1. धन्यवाद शिवम् जी ,मेरी रचना को चयनित करने हेतु

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  2. जिंदगी के कोरे पन्नों पर,
    वक्त ने लिखीं इबारतें।
    दुःख की स्याही ने,
    उकेरे चित्र अनेक।
    सुंदर रचना.......

    जवाब देंहटाएं
  3. अच्छे-बुरे का,
    होने लगा हिसाब।
    खाली पन्नों पर
    होने लगा गुणा-भाग।
    अनुभव बना खजाना,
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर ..सार्थक... ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही अनोखी अभिव्यक्ति। जीवन के विविध आयामों और पहलुओं का लेखाजोखा। अत्यंत सुंदर लगे आपके विचार।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर अभिलाषा जी ! ज़िन्दगी में ठोकर खाने के बाद नई मंजिल की तलाश करने का सफ़र शुरू किया जा सकता है. बहुत पहले एक बहुत बड़ी ठोकर खाकर, नए सिरे से ज़िन्दगी की शुरूआत करते समय मैंने लिखा था -
    आज आँखों में, नए सपने, संजोए आ रहा हूँ,
    दर्द का एहसास है. फिर भी, तराने गा रहा हूँ,
    ज़िन्दगी में खो दिया जो, क्यूँ करूं, उसका हिसाब,
    आज अपने हाथ से, तक़दीर लिखने जा रहा हूँ.

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