अवसाद से घिरा जीवन

आपा-धापी का जीवन,
अवसाद से घिरा जीवन
मान ही लेता है हार,
या हार जाता है जीवन!!
बेरोजगारी !
गरीबी !
फाकाकशी !
अपनों का दगा !
बढ़ती ख्वाहिशें !
इनमें फंसा व्यक्ति,
डूब ही जाता है अवसाद में।
टूटते रिश्ते,
जीवन पर बढ़ता दबाव,
करते हैं हौसला पस्त...
जीवन जीने की जद्दोजहद,
भंवर में फंसा आदमी !!
निकलने की करता कोशिश,
नहीं नजर आता किनारा...
मौका-परस्त हिम्मत !
अक्सर छोड़ देती साथ,
डूब ही जाता है आदमी,
अवसाद के भंवर में...!!
छात्र,युवा,गृहस्थ,
लड़ते रोज जिंदगी की जंग !!
दिखते जब जीवन के रास्ते तंग,
प्यार का सूखा मरूस्थल !!
अपनों की खुदगर्जी,
बाहरी दुनिया के छल-छंद,
छीनते रूमानियत,
तन्हा,बेबस, असफलता ...
की आशंकाओं,
से घिरा आखिर,
डूब ही जाता है अवसाद में !!
अकेलेपन की मार,
वृद्ध-लाचार..!!
स्वाति-बूंद सम प्रेम पाने,
की चाहत !!
दरवाजे को तकती निगाहें ....
एक लंबा इंतजार...!
बेबस वृद्ध मां-बाप,
आखिर डूब ही जाते हैं,
अवसाद में ।
यंत्र-समान यांत्रिक जीवन,
हर इंसान को..!
आखिर दे ही देता है,
अवसाद का तोहफा,
खुशियों का झूठा मुखौटा !!
तन्हा,अकेला ,बेबस..!
अमृत की तलाश में,
भटकता आदमी दर-बदर,
आखिर घिर ही जाता है,
अवसाद में!

अभिलाषा चौहान
स्वरचित

टिप्पणियाँ

  1. जी अभिलाषा बहन आज की दिनचर्या यही है | रोजमर्रा का जीवन भी एक अवसाद सरीखा है | बेहतरीन चिंतन भरी रचना | शुभकामनायें |

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    उत्तर
    1. सहृदय आभार रेणु बहन ,आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए

      हटाएं

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