प्रेम-बंधन


प्रेम-बंधन,
असीमित, अलौकिक!
संसार-सार,
जीवन-विस्तार..,
आत्मीय आनंद..!
जुड़ते मन के तार।
प्रेम-बंधन जहां,
वहां सद्भावों का उत्कर्ष,
हो आनंद का उन्मेष।
देता परत्व को आकार,
हो मनुष्यत्व का प्रसार।
प्रेम बंधन जहां,
वहां प्रीति-प्रतीति..
झूठी है अनीति..!
कुटिल कुरीति..!
हो समत्व भाव,
चाहे हो अभाव।
प्रेम-बंधन है,
आत्मा का प्रसार..
अंतर्मन की पुकार..
भावों का द्वार..
बंधनों की हार।
प्रेम-बंधन जहां,
नहीं मनभेद..!
सब होते हैं एक,
चाहे हो नहीं समक्ष,
देश बसे या विदेश।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित

टिप्पणियाँ

  1. बिल्कुल ही नया सोपान रचा है आपने। बहुत-बहुत बधाई आदरणीय ।

    जवाब देंहटाएं
  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १४ अक्टूबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रेम-बंधन है,
    आत्मा का प्रसार..
    अंतर्मन की पुकार..
    भावों का द्वार..
    बंधनों की हार।

    भावविभोर करती रचना सखी ,सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रेम-बंधन जहां,
    वहां सद्भावों का उत्कर्ष,
    हो आनंद का उन्मेष।
    बहुत सुंदर विचार।

    जवाब देंहटाएं

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