संदेश

मन की बात

चित्र
चोर-चोर का शोर मचा है, पकड़ा कैसे जाए चोर। किसकी बातों को सच माने, दिखे न इसका कोई छोर। जहर घोलते जन-मानस में , इनके देखो ओछे बोल। आंखों पर बाँधी पट्टी है , सच का कोई रहा न मोल। जाति धर्म में देश बांटते, लगती प्यारी इनको फूट। वोट नोट बस इनको प्यारे, जनता को ये लेते लूट। वाणी की मर्यादा तोड़ें , रखते नहीं किसी का मान। षड़यंत्रों का जाल बिछाएँ, और घटाएँ अपना मान। करें अंधभक्त वाहवाही, जिसको माने अपनी जीत। संविधान की खाते कसमें, लेकिन नहीं किसी के मीत। जोर लगाएं एड़ी चोटी, गले कहाँ अब इनकी दाल। हुए खोखले दावे इनके, समझे जनता इनकी चाल। देश भक्त मानव वो सच्चा, जिनके लिए देश अनमोल। झूठ बोल कर आग लगाते, इनके देश विरोधी बोल। देश जले दंगों में जब भी, इनकी पूरी होती आस। अपनी रोटी सेंक रहे हैं , भारत के दुश्मन ये खास। सत्ता पाने की चाहत में , शत्रु देश ही इनके खास। प्रगति देश की भाती कब है, देश लूट की रखते आस। भारत माता के टुकड़े हों, इनकी सबसे यही पुकार । अंधे अंधभक्त और चमचे, इसे मानते हैं अधिकार। सोच-समझकर लेना निर्णय,  अगर देश की है परवाह। हाथ मलोगे गलती करके, रह जाओगे भरते आह। अभिलाषा चौ...

जय माता दी

चित्र
आप सभी शारदीय नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏 🙏  मात शारदे आदि भवानी । सदागति दुर्गा महारानी।। मैं अज्ञानी बालक तेरा। करता रहता मेरा-मेरा।। मातंगी चामुंडा माता। द्वार तुम्हारे जो भी आता।। मैया उसका दुख हर लेती। झोली भर-भर खुशियां देती।। मां मैं भिक्षुक तुम हो दाता। बिन माँगे ही सबकुछ पाता।। तुमने कितने दानव मारे। भक्त जनों के काज सँवारे ।। सती साध्वी पार्वती काली। महिमा अपरम्पार निराली।। कालरात्रि  गौरी भव प्रीता। अद्भुत अनुपम रूप पुनीता।। माता काट काल का घेरा। आधि व्याधि ने डाला डेरा।। पाप बढ़े अब धरती ऊपर। दानव बैठे आकर घर-घर।। दीन हीन सब निर्बल शोषित। अत्याचारी होते तोषित।। आज अधर्मी सुख से जीते। पीड़ित मौन सदा दुख पीते। । जग कल्याणी शूलधारिणी। आध्या शक्ति ब्रह्मचारिणी।। मात हृदय में आप पधारो। पापी जन को आप उबारो।। मन भटके जब-जब भी मेरा। जग में दिखता मुझे अँधेरा।। कौन किसी का बने खिवैया। तड़प रहा दर्शन को मैया।। देव दनुज सब करते पूजा। तुमसा और कौन है दूजा।। दुर्गनाशिनी संकटहरिणी। नारायणी शैलविहारिणी ।। नाम जपें हम करते  विनती। क्षमा करो मां सब है सुनती।। सबका मंगल कर...

दोहावली

चित्र
भक्ति 1. द्वार सुदामा हैं खड़े,सुन दौड़े रणछोड़। आँसू से पग धो रहे,रीति नीति सब तोड़।। 2. मन मंदिर में है बसे, मनमोहन घनश्याम। द्वार खुले रखिए सदा,भजिए उनका नाम। 3. कपट किवाड़ी है लगी,लोभ चढ़े सिर माथ। क्रोधी कामी जग कहे,संगी छोड़े साथ।। 4. ज्ञान द्वार को खोलिए,चलिए सच्ची राह। गुरुवर के आशीष से,पूरी होती चाह।। 5. मन में कान्हा बस रहे,देह उसी का द्वार। तन-मन से सेवा करो,वही लगाए पार।। 6. लिए कमंडल चल पड़े, आत्मज्ञान की चाह। संत समागम सर्वदा,मोक्ष मिलन की राह। 7. भौतिकता के मध्य में,त्यागे पंच विकार। उसे तपस्वी मानिए,जाने जीवन सार। 8. आध्यात्मिक प्रतिबिम्ब है,तिलक लगे जो भाल। सदा सनातन चेतना,बने हमारी ढाल। 9. साध्य साधना से मिले,रखिए संयम चाह। केवल कोरी कल्पना,दुर्गम करती राह। 10. भक्ति भाव निर्मल रखो, त्यागो फल की आस। प्रेम करो भगवान से,बनकर उनके दास। 11. करी सगाई कृष्ण से,प्रीत बढ़ी पुरजोर। चाह बढ़ी चिंता घटी,हृदय बसे चितचोर। 12. भोले की बारात में,यक्ष प्रेत,गंधर्व। दक्षराज क्रोधित हुए,देव अचंभित सर्व। 13 सिय विवाह की शुभ घड़ी,हर्षित पुर के लोग। रामचंद्र वर रूप में,अद्भुत है संयोग। 14....

पौध

चित्र
  पौध  नीति नियम संस्कारों की पौध  हमारी संस्कृति सुविचारों की धीरे-धीरे  मरती जा रही है  जंगली खरपतवार  उग रही है जगह-जगह  जंगलियत का पनपना बताता है हमें  हमारा अतीत वो अतीत जिसे हमने संस्कार,नीति-नियम के सुंदर उपवन में  छिपा दिया था कभी लेकिन....? जहर कभी मरता क्या अब वही जहर सशक्त बन रहा है  जहरीली पौध उर्वरता को कर रही नष्ट पक्की बंजर जमीन पर कहाँ फूटते अंकुर नहीं खिलते सद्भावनाओं के फूल जगह-जगह उगते देखा मैंने जंगली बबूल को जिसके कांटे नश्तर से चुभते हैं  जो नहीं देता छाया जिसमें नहीं लगते फल परोपकार के  अब तो हर ओर बस पनप रहें हैं ये जंगली पौधे स्वार्थ लोभ छल मद के बीज घर के भीतर भी मैंने इन्हें उगते देखा है  नई पीढ़ी  ये जंगली बबूल दे रहे नित समस्याओं को जन्म बेशर्मी से पनपती यह पौध छीन रही मानवीयता की सुंदरता  हम बेबस से देख रहे हैं  हमने ही की है गलती समय रहते नहीं दिया ध्यान  उगने दिया इस जंगली पौध को  जिसने मूल्यों को रख दिया है ताक पर  बेशर्म सी यह जंगली पौध सिर उठाए बढ़ती जा रही ह...

सवैया छंद प्रवाह

चित्र
सवैया छंद पर कुछ रचने का छोटा सा प्रयास किया है। "दुर्मिल सवैया" चौबीस वर्ण का समवर्णिक सवैया है। इसमें चार चरण होते हैं।बारह-बारह वर्णों पर यति होती है।आठ सगण (११२) होते हैं। विधान १२२ ११२ ११२ ११२ ,११२ ११२ ११२ ११२ १. प्रभु का पथ देख रही शबरी, मन आस लिए नित पुष्प चुने। तन वृद्ध भले पर भाव बड़े,उर ध्यान धरे मन स्वप्न बुने। चुन बेर रखे वह स्वाद चखे,प्रभु आवन की पग ताल सुने। चुनती पथ से वह शूल सभी,उर राम बसे मुख नाम गुने। २. कहना-सुनना इस जीवन में, चलता मिलता कुछ क्या कहके। मनभेद बढ़े मतभेद बढ़े,पर प्रेम सदा मन में महके। दिन चार बचे इस जीवन में,अब देख जरा सुख से रहके। अब मेल बढ़ा सब द्वेष घटा,खुशियाँ नित जीवन में चहके। ३ वृषभानु लली अति कोमल सी,मुख चंद्र समान लगे उनका। उर प्रीत बसी मुरलीधर की,वह साध्य बने इस जीवन का। मनमीत मिले जबसे उनको,सुध भूल गई वह है तन का। धुन गूंज रही यमुना तट पे,पग नाप रहे पथ हैं वन का। ४. छलके नयना बहते सपने,तट तोड़ बहीं नदियाँ जबसे। घर डूब गए सब ढोर बहे,विपदा बरसे अब तो नभ से। फसलें बहती जल संग दिखी,हर ओर दिखे जल ही तब से। अपने बिछड़े दुख दर्द मिला,सुख ...

शिव साधना

चित्र
"दोहा" ज्योतिर्लिंग अनूप है,पूजो आठों याम। बेलपत्र चंदन चढ़े,शिव भक्ति के धाम। लिंग रूप भगवान का,शिव का ही है रूप। तीन लोक में श्रेष्ठ है, अद्भुत अतुल अनूप। शिव ही जीवन सार हैं,इस जग के आधार। उनके पूजन-ध्यान से,होता बेड़ापार।। मन से कर आराधना,मोह-लोभ को त्याग। निर्मल तन-मन हो तभी,जाग उठेंगे भाग।। सावन में अभिषेक से,मिलते पुण्य अनन्य  । त्रिपुरारी करते कृपा,जीवन होता धन्य।। महादेव मुझको मिले,करते रहें प्रयास। पूर्ण मनोरथ हो सभी,वे जीवन की आस। मोक्ष मिले बंधन कटे,दूर हटे संताप। भोले के आशीष से,धुलते सारे पाप।। शिव शंकर भगवान का,करले नित ही ध्यान। उनके रुप अनूप में,तीन लोक का ज्ञान।। डमरू त्रिशूल संग हैं,और जटा में गंग। भालचंद्र गल सर्प है,गौरा माता संग।। भोले नाथ करिए कृपा,विनय करें यह दास। दूर हटे अज्ञानता,मिले शरण यह आस। सोरठा देख सती मृत देह,उमड़ा क्रोध अपार है। भस्म हुआ तब नेह, ताण्डव शिव शंकर करें।। शिव ताण्डव को देख,देव सभी घबरा गए। क्रोध खींचता रेख,भोले कैसे शांत हों।। चंद्रचूड़ ओंकार,विनती करते आपसे। जग का ये संहार,भगवन अब तो रोकिए।  शिव ताण्डव यह मंत्र,इसका निशदिन जाप ...