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अंबे तुम्हें मनाके..

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"माता का भजन" तर्ज़-दिल में तुझे बिठा के टेक- अंबे तुम्हें मना के, कदमों में सर झुका के। फरियाद मैं करूँगा, ले दे कर कुछ टरूँगा ।। अंतरा- विघ्न हरण मंगल करणी, कर दो कँठ पपइया । गाना बजाना आए ना हमको, सदा दास गवैया ।। तो.- हृदय में लूँ बिठा के , कदमों में सर झुका के। फरियाद में करूँगा, ले दे कर कुछ टरूँगा ।। अंबे......... अंतरा- तेरे भरोसे साज उठाया,  सुर सम ताल लखाजा । सत्संगत के सागर में अंबे, बिगड़ी आज बना जा ।। तो- यह राग यूं जमा के, कदमों में सर झुका के। फरियाद में करूँगा , ले दे कर कुछ टरूँगा ।। अंबे............. अंतरा- ब्रह्मा विष्णु शिव सनकादिक, तेरा भेद नहीं पावैं । पाप का भार बढ़े पृथ्वी पर, अंबे तुम्हें मनावै ।। तो- संकट में लो बचा के , कदमों में सर झुका के। फरियाद में करूँगा , ले दे कर कुछ टरूँगा ।। अंबे......... अंतरा- जगत तारिणी तू महाकाली , नगरकोट की ज्वाला । कालों की महाकाली तू ही है, खोल दे घट का ताला ।। तो- कुंजी पर ध्यान करके , कदमों में सर झुका के। फरियाद में करूँगा , ले दे कर कुछ टरूँगा।। अंबे............ मेरे स्व.बाबा कुंअर सिंह भदौरिया 'कुंजी'की