मैं कर्त्ता हूं...!!
"मैं कर्त्ता हूं "यह सत्य मानकर कर मनुष्य सदा भ्रम का जीवन जीता है।वह स्वयं को सदैव अंधेरे में रखता है।यह जानते हुए भी कि उसके पैदा होने से पहले और उसके जाने के बाद भी यह दुनिया उसी तरह चलती रहेगी जैसे उसके सामने चल रही है। सही मानिए कि जिस मनुष्य इस भ्रम से मुक्त हो जाएगा ,उस दिन ना जाने कितनी समस्याओं का अंत स्वत ही हो जाएगा।पर युग बीत गए लेकिन मनुष्य इस भ्रम को सत्य मानकर जीवन जीता आ रहा है। भौतिक सुखों का दास बनकर जीवन भर भौतिक सुखों का संग्रह करता है और फिर उनका मालिक बनकर स्वयं को कर्ता मान बैठता है, यहीं से सारी समस्याएं जन्म लेती हैं,जीवन का उद्देश्य क्या है?जीवन का वास्तविक अर्थ क्या है?जीवन का आनंद क्या है?वह कभी जान नहीं पाता!! एक मनुष्य के लिए गृहस्थ जीवन सबसे बड़ा तप है।अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने और सृष्टि के सृजन में अपना योगदान देने के लिए संतानोत्पत्ति करना, उन्हें अच्छे संस्कार देना, उन्हें योग्य बनाना और संसाधन जुटाना यहां तक तो ठीक है, सब बढ़िया है पर जब संतान योग्य हो जाए तो भी स्वयं को सर्वेसर्वा मानकर परिवार का संचालन अपने ही हाथों में रखना ग़लत