तो असली दीवाली

दिल के दीप जलें जब सबके तो आए खुशहाली सुप्त भाव जब जगमग हों तो असली दीवाली दीपों से रोशन घर आंगन मन में घिरा अंधेरा अपनी-अपनी लक्ष्मण रेखा हो बस तेरा-मेरा दृष्टि बाधित गूंगे-बहरे हाथों लिए कुदाली दिल जलते पर पीर न प्यारी शूल चुभा खुश होवें अपने घर को रोशन कर लें चैन इसी में खोवें बदली-बदली समय की धारा बढ़ती बस बदहाली गली-मोहल्ले और चौबारे रोशन हो जब फिर से दीन दुखी की समझें पीड़ा दिल मिल जाएं दिल से दीप से दीप जलें घर-घर में दीवाली हो निराली । अभिलाषा चौहान