चक्रव्यूह रचे जा रहे हैं......


फिर रचे जा रहे चक्रव्यूह
फिर कोई अकेला अभिमन्यु
फंसकर इस चक्रव्यूह में
गंवा देगा अपने प्राण
हर और विराजमान हैं धृतराष्ट्र
देश की दुरवस्था से अनभिज्ञ
अपने स्वार्थ में लिप्त
सत्ता की प्रबल चाह
गंदी राजनीति
हर ओर कराती महाभारत
द्रोणाचार्य, भीष्म तब भी चुप थे
अब भी चुप हैं
कलियुग में कहां से आयेंगे कृष्ण
अधर्म का नाश करने
तार-तार होती द्रोपदी की लाज
जिसका नहीं कोई रखवाला आज
खंडित होते समाज - परिवार
लोगों के मन - जीवन
इस महाभारत से
सत्ता के गलियारों से
अधर्म और अनीति
हर धर्म तक जा पहुंची है
जातीयता का विष
प्रचंड हो रहा है
नीति न्याय समानता सदाचार
बीते कल की बातें लगती हैं
हर ओर हैं जयचंद
हर ओर हैं मतिमंद
अब तो बस चक्रव्यूह रचे जाते हैं
जिसमें फंसी अभिमन्यु सी आम जनता
व्यूह भेद नहीं पाती हैं
बहुरूपियों की चाल
समझने में देर हो जाती है
अब हर ओर महाभारत है
हर ओर दुःशाशन है
हर किसी को
चक्रव्यूह रचने की आदत है
नहीं है कृष्ण यह सब देखने को
धर्म की स्थापना हेतु
जो हुई थी महाभारत
वही धर्म बन गया है
महाभारत का कारण
चक्रव्यूह रचने की महारत
अब हर किसी को है हासिल!.!.!
(अभिलाषा चौहान)



टिप्पणियाँ

  1. अभिलाषा जी आज के धरातल पर बिल्कुल सच बयां करती सार्थक रचना ।
    इतनी गहरी खरी रचना के लिये साधुवाद।

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    उत्तर
    1. धन्यवाद आदरणीया कुसुम जी आपकी प्रेरणास्पद
      प्रतिक्रिया के लिए

      हटाएं
  2. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०९ जुलाई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति मेरा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'



    विशेष : हम चाहते हैं आदरणीय रोली अभिलाषा जी को उनके प्रथम पुस्तक प्रकाशन हेतु आपसभी लोकतंत्र संवाद मंच पर अपने आगमन के साथ उन्हें प्रोत्साहन व स्नेह प्रदान करें। 'एकलव्य'

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    1. सादर आभार आपका एकलव्य जी। आपने मेरी
      रचना को" लोकतंत्र संवाद मंच "पर स्थान देकर
      मुझे अनुगृहित किया है। आप लोगों की सार्थक
      प्रतिक्रियाएं मनोबल में वृद्धि करती हैं। धन्यवाद

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  3. बहुत सुन्दर अभिलाषा जी. अब अभिमन्यु को अपनी रणनीति बदलनी होगी, उसे अपने प्रतिद्वंदियों में से प्रत्येक को सिंहासन का अलग-अलग लालच देकर आपस में ही लड़वाना होगा और द्रोपदी को सभा में मदद के लिए गुहार लगाने के स्थान पर स्वयं अस्त्र उठाना होगा.

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    1. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका सादर धन्यवाद
      आदरणीय गोपेश जी

      हटाएं
  4. द्रोणाचार्य, भीष्म तब भी चुप थे
    अब भी चुप हैं
    कलियुग में कहां से आयेंगे कृष्ण
    अधर्म का नाश करने
    तार-तार होती द्रोपदी की लाज
    जिसका नहीं कोई रखवाला आज सार्थक रचना

    जवाब देंहटाएं
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    1. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका धन्यवाद अनुराधा जी

      हटाएं
  5. इतनी खूबसूरती से समाज के विचलन को दर्शाया है आपने अभिलाषा जी
    ,;;;;द्रोणाचार्य, भीष्म तब भी चुप थे
    अब भी चुप हैं
    कलियुग में कहां से आयेंगे कृष्ण
    अधर्म का नाश करने....वाह

    जवाब देंहटाएं
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    1. धन्यवाद आदरणीया अलकनंदा जी आपकी
      प्रतिक्रिया ने उत्साहित किया

      हटाएं

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