सवैया छंद प्रवाह
सवैया छंद पर कुछ रचने का छोटा सा प्रयास किया है।
"दुर्मिल सवैया"
चौबीस वर्ण का समवर्णिक सवैया है। इसमें चार चरण होते हैं।बारह-बारह वर्णों पर यति होती है।आठ सगण (११२) होते हैं।
विधान
१२२ ११२ ११२ ११२ ,११२ ११२ ११२ ११२
१.
प्रभु का पथ देख रही शबरी, मन आस लिए नित पुष्प चुने।
तन वृद्ध भले पर भाव बड़े,उर ध्यान धरे मन स्वप्न बुने।
चुन बेर रखे वह स्वाद चखे,प्रभु आवन की पग ताल सुने।
चुनती पथ से वह शूल सभी,उर राम बसे मुख नाम गुने।
२.
कहना-सुनना इस जीवन में, चलता मिलता कुछ क्या कहके।
मनभेद बढ़े मतभेद बढ़े,पर प्रेम सदा मन में महके।
दिन चार बचे इस जीवन में,अब देख जरा सुख से रहके।
अब मेल बढ़ा सब द्वेष घटा,खुशियाँ नित जीवन में चहके।
३
वृषभानु लली अति कोमल सी,मुख चंद्र समान लगे उनका।
उर प्रीत बसी मुरलीधर की,वह साध्य बने इस जीवन का।
मनमीत मिले जबसे उनको,सुध भूल गई वह है तन का।
धुन गूंज रही यमुना तट पे,पग नाप रहे पथ हैं वन का।
४.
छलके नयना बहते सपने,तट तोड़ बहीं नदियाँ जबसे।
घर डूब गए सब ढोर बहे,विपदा बरसे अब तो नभ से।
फसलें बहती जल संग दिखी,हर ओर दिखे जल ही तब से।
अपने बिछड़े दुख दर्द मिला,सुख भोर नहीं तड़पे कबसे।
५.
सड़कों पर तैर रहीं मछली,सब वाहन तैर रहे जल में।
भयभीत हुआ जनमानस है ,कब बादल कोप फटे पल में।
अब नींद नहीं इन नैनन में,दुख दर्द मिले अब तो कल में।
घर बार छिने मन पीर उठे,अब जीवन सौख्य रसातल में।
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"मदिरा सवैया"
मदिरा सवैया चार चरण का वर्णिक छंद है।इसके प्रत्येक चरण में सात भगण(211)और एक गुरु (2)होता है तथा दसवें और बारहवें वर्ण पर यति होती है।
राम चले वनवास सखी,पितु मातु सखा सब छोड़ चले।
संग चली सुकुमारि सिया,ऋषि वेश धरे वनमाल गले।
लक्ष्मण संग चले उनके,प्रण रक्षक का मन भाव पले।
उर्मिल के मन पीर उठे,पति छोड़ चले सब स्वप्न जले।
२.
आनन सुंदर चंद्र सखी,पंकज से नयना है जिनके।
पीत पटा तन पे पहने,धनु बाण सुशोभित है उनके।
रूप लगे मन भावन है,उर प्रेम जगे रस है छनके।
भूल गए सुध देख सभी,वह मीत बने बस है मनके।
३.
राम सुधारक हैं जग के,मन में उनका बस ध्यान धरो।
त्याग समर्पण की प्रतिमा,उनका नित ही गुणगान करो।
प्रेरक का वह रूप लिए,उनके पथ को तुम क्यों बिसरो।
जीवन लक्ष्य वही जग में,उर में नित सुंदर भाव भरो।
"अतिवृष्टि"
१.
ताल तड़ाग भरे जल से, नदियाँ बहती तट तोड़ सखी।
डूब गए घर खेत सभी,सड़कों पर खैवत नाव लखी।
टूट रहे पुल पर्वत भी,मरते पशु मानुष और पखी।
आपद भीषण आन पड़ी,प्रभु कष्ट मिटें यह आस रखी।
२.
सावन में नभ घोर घटा,गरजे बरसे जलधार बहे।
प्रीतम के बिन कौन सुने,मन पीर बढ़े उर आग दहे।
चातक सी वह देख घुटे,वह छोड़ गए बिन बात कहे।
टूट गया सपना उसका,तड़पे मचले बस मौन गहे।
३."कृष्ण" सवैया
माधव रूप बसा उर में,अति मोहक चंद्र समान लगे।
कानन कुण्डल कुंचित है, लट सुंदर नैनन प्रीत जगे।
नीलम से तन शोभित है,पट पीत लगे नभ सूर्य उगे।
पंकज से अधरों पर है ,मुरली जिसकी धुन में सब लोग पगे।
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"सुन्दरी सवैया"
विधान :- सुंदरी सवैया वर्णिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं।प्रत्येक चरण में बारह और तेरह वर्णों पर यति का विधान है।
विधान
112×8+2 =25 वर्ण
112 112 112 112, 112 112 112 1122
तरसे बरसों तक ये नयना,अब राम बसें इनमें यह आशा।
तुम ही अब जीवन के धन हो,तुम ही अब जीवन की परिभाषा।
यह ध्यान रखे मन में तब ही,हटता तम घोर मिटे अभिलाषा।
गुणगान करो यशगान करो,भज राम मिटे हर ओर हताशा।
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"अरविंद सवैया"
इस सवैया छंद में चार चरण होते हैं।यह वर्णिक छंद है। इसमें बारह और तेरह वर्णों पर यति होती है। इसमें सगण(११२)की आवृत्ति बारह बार और अंत में एक लघु(१)वर्ण प्रयुक्त होता है।
विधान
११२ ११२ ११२ ११२,११२ ११२ ११२ ११२ १
मन राम बसे यह ध्यान रखें,मनमीत वही जग तारण हार।
जप नाम करें पथ देख चुने,जिससे प्रभु राम चले हर बार।
भव सागर नाव फँसी जब है,प्रभु राम सदा करते बस पार।
उनके चरणों नित शीश झुका,बस कर्म करें फल दें सरकार।
अभिलाषा चौहान
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