बात छोटी -सी






तने ने 

सभी शाखाओं को

मजबूती से

थाम रखा था

भ्रम था उसे

अपने अस्तित्व पर

भूल गया था जड़ को

उपेक्षित जड़

कुंठा में रोगी बन गई 

लग गई दीमक

और सूखने लगा तना भी

जड़ और तने की निर्बलता 

शाखाओं पर

बिजली सी गिरी

अधर में लटकी शाखाएं 

जड़ और तने के बिना

एक पल में बिखर गई 

सूख गया रस

नहीं बची पनपने की राह

पड़ गई अलग-थलग 

जीवन के लिए 

दोनों ही जरूरी है 

ये शाखाओं ने उस दिन जाना

जिन्हें गुरुर में 

कभी अपना ना माना...!!


2.


तना 

तना हुआ...!!

अपनी मजबूती पर

इतरा रहा था;

शाखाओं को देखकर

मुस्करा रहा था;

अहम से भरा

अपने वजूद की

अहमियत बता रहा था;

जड़ बेचारी,दबी,सहमी,उपेक्षिता 

मौन होकर सब देख रही थी;

इनकी अज्ञानता पर 

मन ही मन रो रही थी;

जिनको सहेजने में लुटा बैठी सब

वह तेज अपना खो रही थी..!!

अपनी जड़ों को भूलकर 

भला कोई कैसे पनप सकता है? 

यह सत्य तब साक्षात हुआ...!

जड़ की निर्बलता से

तने की जड़ता खोने लगी...!!

शाखाएं वजूद के लिए 

लड़ने लगीं...!!

उस दिन अहसास हुआ..;

बिना जड़ के भला कौन 

खास हुआ...?

बात छोटी सी थी पर

मन उदास हुआ..!!

आज हम अपनी जड़ों को भूले हैं ,

तने हुए हैं पर झूठे वजूद पर फूलें हैं।

निराधार सी जिंदगी को चमक से जीते हैं ,

ना जमीं ना आसमां बस अधर में झूले हैं।




अभिलाषा चौहान


टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुन्दर !
    लोकतंत्र की जड़ तो आम आदमी ही होता है पर सत्ता के मद में तना हुआ नेता इसे भला कब मानता है?

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी बिल्कुल, सहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर

      हटाएं
  2. वाह बहुत खूब लिखा है

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 31 अगस्त 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

    जवाब देंहटाएं

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