बेटी का दर्द





मुझे जन्म मत देना मां ...!!

ये संसार मेरे लिए नहीं

कुचल देना मुझे कोख में ..!!

नियति मेरी बस यही

तुम मुझे बचा नहीं पाओगी,

ढाल मेरी बन नहीं पाओगी,

चिंता में जियोगी मर-मर कर,

विष पियोगी भर-भर कर,

मसल देना अपने हाथों से 

मिलेगी तसल्ली तुम्हें ...!!

मेरे नुचे हुए बदन को

देख नहीं पाओगी...!!

अपने सपनों को लुटने से

रोक नहीं पाओगी...!!

तुम अबला हो मां ,

मैं हूं निर्बल ..!!

काली या दुर्गा तो तब बनूंगी..?

जब राक्षसों के पंजों से बचूंगी..?

कहां भटकोगी पाने को न्याय..? 

कैसे पूरा करोगी अपना दाय..?

मुझे जन्म ना देना मां ....!!


लुटती है जब कोई बेटी ..? 

बन जाती है सबके लिए मौका..!

हैवानियत का खेल

आज तक किसी ने नहीं रोका..?

ये झिलमिलाती मोमबत्तियां ,

ये प्रोटेस्ट,

ये राजनीतिक दांव-पेंच ,

आधे-अधूरी जांच...??

मैं लुटकर मरकर

बन जाती हूं एक गेंद ...??

जिसे सब उछालते हैं ,

अपने अवसर तलाशते हैं...!!

मुझे यूं नहीं जीना ...!

मुझे यूं नहीं मरना...!

तुम्हीं अपने हाथों से मसल देना 

मुझे जन्म ना देना मां...!!


बेटी के अपराधी '

खुल्लम-खुल्ला घूमते है ...!!

न्याय को अपने कदमों 

में रौंदते हैं ...!!

हर पल लुटती एक बेटी..!!

देखो -समझो मां ..!!

ये नारे-जुमलेबाजी-दोषारोपण,

तुम्हें चुभेंगे सुई से...!!

बेटी के माता-पिता होने पर

तुम्हें होगी कोफ्त...!!

आएगा तुम्हें समझ में ...

भ्रूण हत्या का महत्व...??

बेटियों के जन्म पर मातम...??

पर्दे में बंद रखने का चलन..?

क्यों रहती थी उसकी दुनिया तंग

ये समझ आया ना मां..!!

तुम नहीं बचा पाओगी...

समय बदला है मां 

मानसिकता नहीं...!!

कानून तो अंधा है ..?

सबूतों पर चलता है ..?

हैवान कानून को नहीं ..

सबूतों को छेड़ता है ..?

बुलंद हैं उसके हौंसले...

जो लुट गई बेटी

वो बोल नहीं पाती है ..??

उसकी दशा

किसको रुलाती है...??

मां-बाप की कसक और 

बेचारी बन जाती है ..??

मसल देना अपने हाथों से

कोख में ...!!

सुकून मिलेगा तुम्हें 

नहीं तो पूछा जाएगा बार-बार 

बेटी को खोकर..!!

कैसा महसूस कर रहें आप..?

क्या चाहते हैं आप...?


अभिलाषा चौहान 




टिप्पणियाँ

  1. सटिक,मार्मिक अभिव्यक्ति।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २३ अगस्त २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर

      हटाएं
  3. बहुत बहुत मार्मिक सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर

      हटाएं
  4. पीड़ाएँ जिसे यहाँ शब्द रूप में पढ़ने में इतना असहनीय लग रहा है और स्त्री जिनके जीवन में ये सारे पीड़ाएं है। अंतर का अनुमान लगाना पुरूष मन के लिए आसान नहीं है।
    मार्मिक। पढ़कर कंठ रूँध गया।

    जवाब देंहटाएं
  5. जी दर्द का बयां शब्दों में करना नामुमकिन है कितनी अजीब व्यवस्था है ये कि वे माता-पिता जो बेटी को किसी अन्याय और दुराचार के कारण खो देते हैं उन्हें ही न्याय पाने के लिए भटकना पड़ता है,जबकि दुराचारी जीत का जश्न मनाता है। सहृदय आभार आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. उत्तर
    1. सहृदय आभार आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर

      हटाएं

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