ये कैसा परिवेश है...??
वो निश्चिंत थी
स्वयं को मानकर सुरक्षित
कर रही थी
निष्काम कर्म...!!
कहां पता था उसे...
किसी की नजर उस पर गड़ी थी
लहुलुहान निर्जीव वो पड़ी थी...!
काम में अंधे
बाजों के पंजों में फंसी
चिड़िया सी फड़फड़ाई थी
मेमने सी मिमियायी थी
मांगी थी भीख आबरू की
पर वह उनके लिए थी
मांस का लोथड़ा
जिसे नोचते-खसोटते
उन जानवरों ने
कब सोचा कि यह जिंदा है
यह भी किसी की बेटी है
किसी की बहन है ...!!!
कहां से आ गए इतने नरभक्षी
घर ,गली , चोराहों पर
शिकार की तलाश में डोलते
इंसानियत को तराजू में तोलते
इनकी निगाहों में उम्र
के कोई मायने नहीं ...!!
महीने भर की हो साठ साल की
पर्दे में हो या बेपर्दा
इनके लिए तो वह मांस का
लोथड़ा है
देखते ही टपकती है इनकी लार
गिद्ध सी निगाहें
नोंच लेना चाहती है उसका वजूद
ये जानवर
जिनसे नहीं सुरक्षित
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे
इंसाफ के मंदिर
अस्पताल के कमरे
इनकी बढ़ती तादाद
हर गली इनसे आबाद
क्यों नहीं पकड़ पाते इन्हें
नहीं कर पाते पिंजरों में बंद
ये मांस के लोथड़ों के
शौकीन,हवस के अंधे
क्यों घूमते हैं शान से
क्यों हर पल होती
एक बेटी की मौत...??
जिसका जिम्मेदार कौन हैं
ये जानवर..?
हमारी सुषुप्त व्यवस्था...?
या हमारी उदासीनता..?
बेटियां आज अपने वजूद से
भयभीत हैं
समाज का लहू हुआ शीत है
कैसे बचेगी बेटी...??
कैसे पढ़ेगी बेटी...??
कैसे रचेगी इतिहास..??
जब वही इतिहास बन जाती है
कुछ दिन की सुर्खियां बस
माता-पिता की कसक बन जाती है ....!!
ये दरिंदे भी यहीं पैदा होते हैं
हम इन्हें पालते और खुश होते हैं
बेटी के मिटते वजूद पर
करते हैं टीका-टिप्पणी
फिर हम सब भूल जाते हैं
ये कैसा विकास है....?
क्यों हर बेटी उदास है...?
क्यों हर ओर अंधकार है..??
कौन सुनता ये चीत्कार है..??
क्यों बन जाती वह मात्र
एक केस है....??
अब और क्या होना शेष है..??
ये कैसा परिवेश है..??
हैवानों की ऐश है...!!
अभिलाषा चौहान
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 19 अगस्त 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय सादर
हटाएंसटीक
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर
हटाएंमजाज़ लखनवी ने कहा है -
जवाब देंहटाएंबहुत मुश्किल है, दुनिया का संवरना,
तेरी ज़ुल्फ़ों का, पेचो-ख़म नहीं है.
इन्सान की हैवानी फ़ितरत कभी बदलने वाली नहीं है.
जी आदरणीय,घर के दोषियों को पहचानना और सजा देना मुश्किल है ये पहचान में ही तब आते हैं जब हैवानियत को अंजाम दे देते हैं। सहृदय आभार आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर मर्म स्पर्शी
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर
हटाएं"...
जवाब देंहटाएंये मांस के लोथड़ों के
शौकीन,हवस के अंधे
क्यों घूमते हैं शान से
..."
///हाँ, ये देखकर हमारा दुःख और कई गुणा बढ़ जाता है।///
"...
ये दरिंदे भी यहीं पैदा होते हैं
हम इन्हें पालते और खुश होते हैं
..."
///ये सच है। हम इन्हें बार-बार अनदेखा करते रहते है और एक दिन हमे ऐसी घटना का साक्षी बनना पड़ता है।///
"...
हैवानों की ऐश है...!!
..."
///यही कारण है की उनका मनोबल कभी टूटता नहीं है।
आपकी ये रचना वर्तमान मुद्दे के सारे पहलूओं पर बात की गयी है। इससे आपके (स्त्री) मन पर कितना आघात पहुँचा है इसे साफ-साफ समझा जा सकता है। चिंता ना करें हमसब साथ मिलकर इसे ठीक करेंगे। विश्वास। सादर प्रणाम।
इतनी सार्थक और प्रेरणास्पद समीक्षा के लिए सहृदय आभार।
हटाएंउम्मीद पर दुनिया कायम है।
बदलाव केलिए दृढ़ संकल्प जरूरी है।
आपकी प्रतिक्रिया पाकर सृजन और सृजन का उद्देश्य सार्थक हुआ।
सादर
प्रकाश जी, माफी चाहूंगी🙏
हटाएंपर इस तरह के कितने ही केस हो जाते। कुछ दिनों तक जनता में रोष रहता, कैंडल मार्च निकलते, लोग सड़कों पर उतरते और फिर धीरे धीरे लोग शांत हो जाते, ऐसी घिनौनी हरकत के लिए कोई शख्त कदम नहीं उड़ाए जाते ताकि ऐसा करने की कोई जुर्रत ना कर सके। फिर कैसे हमसब साथ मिलकर इसे ठीक करेंगे?
आपकी बात से सहमत हूं रूपा जी, कितने ही मामले ऐसे हैं जिनमें छोटी बच्चियों को भी नहीं छोड़ा गया है।समझ नहीं आता कि क्या हो गया समाज को..? मानसिकता इतनी गंदी...!!
हटाएंशर्म आती है सोचकर..!! सरकार को सबसे पहले पोर्न साइट्स बैन करनी चाहिए, इन्होंने ही भ्रमित किया है युवाओं को ,,
सजा का प्रावधान भी इतना लंबा है कि अपराधियों का भय नहीं है उसका,सादर
आपकी बात से सहमत हूं रूपा जी, कितने ही मामले ऐसे हैं जिनमें छोटी बच्चियों को भी नहीं छोड़ा गया है।समझ नहीं आता कि क्या हो गया समाज को..? मानसिकता इतनी गंदी...!!
हटाएंशर्म आती है सोचकर..!! सरकार को सबसे पहले पोर्न साइट्स बैन करनी चाहिए, इन्होंने ही भ्रमित किया है युवाओं को ,,
सजा का प्रावधान भी इतना लंबा है कि अपराधियों का भय नहीं है उसका,सादर
पढ़ते पढ़ते आंखों से आंसू आ गए, मानो सारा घटनाक्रम आंखों के सामने से होकर गुजर गया। कविता की तारीफ करने का जी नहीं हो रहा। बेटियां अपने कार्यस्थल पर भी सुरक्षित नहीं हैं। कैसे हैवान घूम रहे हमारे ही इर्द गिर्द?
जवाब देंहटाएंदिल को भेदती रचना।
घटना है ही ऐसी रूपा जी... स्वार्थ की रोटियां सेंकते इन रसूखदारों को क्या पता कि परिवार किस दर्द से गुजरता है।सोचकर हैरानी होती है कि अपराधी सबूतों के अभाव में मौज काटता है और परिवार ताउम्र दर्द में जीता है,इसकी भावनाओं का बलात्कार हर पल होता है और हर कोई करता है।सादर
हटाएंसहृदय आभार आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है