ये कहां जा रहें हैं हम....??
एक यात्रा : एक प्रश्न
अभी पिछले दो माह से अमेरिका में रह रहे अपने बेटे के पास गए थे। वहां पर प्रकृति का सुरम्य रूप देख मन बाग-बाग हो गया।सबसे ज्यादा प्रभावित वहां के साफ-सुथरे वातावरण ने किया। जहां देखो हरियाली, सड़कें साफ सुथरी , हरे-भरे लहलहाते वृक्ष और प्रदूषण नाम-मात्र को नहीं।
ऐसा नहीं कि वहां फेक्ट्रियां नहीं हैं,ऐसा भी नहीं कि वहां गाडियां नहीं,सड़कों पर बस गाडियां ही दिखाई देती हैं पर एक्यूआई हमेशा पचास से कम...!!!सब कुछ व्यवस्थित...एक से बने सुंदर घर, घरों के आस-पास हरे भरे लाॅन...सबकुछ बड़ा ही मन मोहक... पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षा का मनमोहक रूप वहां देखने को मिला।हर घर के आगे एक से वृक्ष लगे हुए और उनकी समय पर देखभाल करते वहां के सरकारी कर्मचारी सबकुछ आश्चर्यजनक...ऐसा नहीं कि मैं अपने देश की बुराई कर रही हूं।हम लोग जहां रहते थे वहां अधिकतर भारतीय ही रहते हैं,वे सब वहां के नियमों का कड़ाई से पालन करते दिखते हैं।कचड़ा संग्रहण की कितनी उचित व्यवस्था है वहां...!!सबसे बड़ी बात कि वहां लोग नियमों का पालन बड़ी प्रतिबद्धता से करते हैं।
कानून-व्यवस्था का कितना डर है वहां... गाडियां सड़कों पर दौड़ती है पर नियमों का पालन करते हुए।चाहे रेस्टोरेंट्स हो,चाहे पार्क हो,चाहे कोई पब्लिक प्लेस या फिर चाहे कोई घूमने की जगह सब कुछ सुंदर ,व्यवस्थित और गंदगी से रहित।
हमने टैक्सास कैपिटल जो कि आस्टिन में है उसे भी देखा.. उससे सरकार अपने सारे कार्य संचालित करती है पर पर्यटकों के लिए खोल रखा है उसे,लोग वहां घूमते हैं,फोटो खींचते हैं कहीं कोई रोक-टोक नहीं। वहां के हिंदू मंदिर विशाल क्षेत्र में बने हुए आस-पास इतनी हरियाली कि देख कर मन प्रसन्न हो गया।
कुलांचे भरते हिरण मंदिर प्रांगण में दिखाई दे जाते हैं,नाचते हुए मोर जिनके पास आप आसानी से जा सकते हैं।सब कुछ आश्चर्य जनक।एक सी बनी सोसाइटियों में बारिश के पानी के संग्रहण के बनाए गए तालाब,घूमने के लिए पार्क, स्वचालित गेट, सिक्योरिटी का पर्याप्त इंतजाम।
सब कुछ इतना व्यवस्थित,सुंदर कि मन सोचने पर विवश हो गया कि आखिर हमारे देश में ऐसा क्यों नहीं हो सकता...??हम इतने लापरवाह क्यों हैं..?हम लोग नियमों का पालन करने की जगह पहले उनके तोड़ ढूंढ लेते हैं।हमारे यहां का एक्यूआई हमेशा दो सौ से ऊपर ही क्यों रहता है...? हमारे यहां उतनी हरियाली क्यों नहीं है..?
मैं जयपुर में रहती हूं जो पिंक सिटी के नाम से विख्यात है लेकिन अब पिंक सिटी कहीं खो गयी है..? अव्यवस्थित शहरी बसावट, ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने की चाह में बेतरतीब बने हुए मकान, मकानों के आगे-पीछे की जगह को भी काम में लेने के लिए वृक्षों का विनाश कहीं भी हरियाली का नामोनिशान नहीं, जगह-जगह कचड़े के ढेर, आवारा मवेशी ,मनमानी जगह पर ठेले,थड़ी वाले...शहर तो कहीं दिखता ही नहीं आखिर क्यों....?? जयपुर में एक बांध हुआ करता था "रामगढ़ बांध"मैंने उसे लबालब देखा था पानी से कभी,आज वह बांध तो है पर उसमें पानी नहीं,कारण पानी आने के रास्तों में अतिक्रमण...?कबसे इसपर जांच चल रही है,पर इसका कोई हल दिखाई नहीं दे रहा,कारण क्या है...?"भ्रष्टाचार...?जी हां बस एक यही कारण है जो हमारे देश की नैसर्गिक सुंदरता पर विराम लगा रहा है।हर बार बारिश से पहले रामगढ़ बांध की चर्चा की जाती है पर पानी उसमें अब तक नहीं आया..अरावली की पहाड़ियों की कटाई जारी है,पर खनन करने वाले और रोकने वाले दोनों आंखों पर पट्टी बांधे है।जमीन की छाती चीर कर पानी निकालने वाले ये नहीं सोच पा रहे कि धरती का सीना हमारे प्यास कब तक बुझाएगा...??
अब तो पार्कों की जमीन पर भी मकान बन रहे हैं। तालाबों को कचरे से पाट कर भवन बन रहें हैं ना आम आदमी को प्रकृति की फ़िक्र है और ना ही सरकारी अमले को...?हम पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण में तो लगे हैं पर वहां की अच्छी बातें हमें दिखाई नहीं देती। वहां भी सोसायटी बसती हैं लेकिन प्रकृति को कैसे बचाया जा सकता है इसका पूरा ध्यान रखा जाता है।हमने देखा कि घरों में प्रयुक्त होने वाले जल को प्यूरीफाई करके हर सोसायटी में एक तालाब या एक नहर सी बना दी गई है उसके आसपास घास और पेड़ लगाए गए हैं,उन नहरों में मछलियां पल रहीं हैं।वाक वे बने हुए हैं।सब कितना सुंदर..! मछलियां जल को और भी ज्यादा स्वच्छ कर देती हैं,उसी जल से पेड़-पौधों की सिंचाई हो जाती हैं, भूमिगत सिंचाई की सुंदर स्वचालित व्यवस्था है। वृक्षों की देखभाल, उनकी कटाई -छंटाई समय-समय पर आकर कर्मचारी करते हैं और तो और वहां घर भी लकड़ी के होते हैं लेकिन फिर भी प्रकृति का जो रूप वहां दिखाई देता है वह हमें हमारे शहरों में कहां दिखाई देता है...? यहां तो बस उड़ती हुई धूल और फैला हुआ कचड़ा ही शहरों की पहचान बन गई है।धुंआ उगलते वाहन, फैक्ट्रियों की गंदगी, वाहनों का शोर वातावरण को दूषित कर रहा है।हम स्वयं ऐसे ही जीवन के आदी हो चुके हैं।अगर हर व्यक्ति भी अपना दायित्व समझे और अपने घरों के आस-पास थोड़ी सी जगह हरियाली के लिए छोड़े, साफ-सफाई का ध्यान रखे तो कितनी समस्याएं हल हो सकती हैं..?
माना कि हमारे देश की जनसंख्या ज्यादा है,माना कि हमारे देश में गरीबी और अशिक्षा ज्यादा है लेकिन प्रकृति संरक्षण और पर्यावरण सुरक्षा के लिए किसी डिग्री की आवश्यकता नहीं है,ये कहां पढ़ाया जाता है कि हम वृक्षों का विनाश करें और यत्र-तत्र कचड़ा फेंके...?आज हमारे देश में सारी नदियां दूषित हैं, कुएं-बावड़ी,पोखर-ताल या तो गंदगी से अटे हैं या सूखे पड़े हैं। घरों के आगे हर व्यक्ति दो वृक्ष भी लगाए तो हरियाली बढ़ सकती है पर हम एक इंच जमीन भी उनके लिए नहीं छोड़ते... आज घर सड़कों से मिल गए हैं। वृक्षों के लिए जगह कहां हैं...?
अपने घरों को साफ-सुथरा रखने वाले आस-पास के वातावरण को कचड़ा फेंक कर दूषित करते हैं।कचड़ा-पात्र रखा होने भी पब्लिक प्लेस में लोग कहीं भी कचड़ा फेंक देते हैं... पार्कों में हो या मंदिरों, पहाड़ों पर हो या समतल में हमें हर जगह गंदगी दिखाई देती है, आंधी-तूफान आने पर हवा में उड़ती पालीथिन कितनी सुंदर लगती है...!!!ना तो हमारे यहां बर्षा जल के उचित संग्रहण पर ध्यान दिया जाता है और ना पर्यावरण संरक्षण पर।हम सारा दोष व्यवस्था को देते हैं पर अपने गिरेबान में नहीं झांकते। अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे लोग भी वातावरण को बिगाड़ने में अपना अहम योगदान दायित्व देते दिखाई दे जाते हैं।सफाई का दायित्व मात्र सरकार का तो नहीं,घर के आगे दो वृक्ष लगाने का काम भी सरकार का नहीं। सरकार कानून बनाती है,लोग कानून को तोड़ने का तोड़ ढूंढते हैं, सड़कों पर धुंआ उगलते वाहन चलाना प्रतिबंधित है पर ना सरकारी अमला इस पर ध्यान देता है और ना ही लोग इसके नुकसान समझते हैं।
आजीविका की तलाश में नौजवान अपना गांव-शहर छोड़ कर दूसरे शहर में जाते हैं। उन्हें घर की तलाश होती है।ऐसे में शहरों में किराए के घरों की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इसमें कोई बुराई नहीं क्योंकि अमरीका भी जाते हैं लोग... उन्हें भी घर चाहिए होते हैं पर जैसे वे वहां के नियमों का पालन करते हैं,वैसे हमारे यहां नियमों का पालन क्यों नहीं हो सकता..?माना कि किराए पर देने के लिए बहुमंजिला मकान बनाएं जा रहे हैं पर ये कहां लिखा है कि उनके आसपास वृक्ष नहीं होने चाहिए।उनके आसपास कचड़ा निस्तारण के लिए सिर्फ सड़क ही होनी चाहिए। इसमें सरकार को दोष देकर हम सिर्फ अपने दोषों को ढकते है।सच मानिए हमारे देश में जो प्राकृतिक सौंदर्य है वह कहीं नहीं है पर हमने किसी भी स्थान को इस लायक नहीं छोड़ा कि उसका वास्तविक सौंदर्य बरकरार रहे। गाड़ियों के हिसाब से अमेरिका में सबसे ज्यादा प्रदूषण होना चाहिए। वहां पर घर ,माॅल, शापिंग सेंटर सभी वातानुकूलित होते हैं पर वहां की हरियाली और वन क्षेत्र प्रदूषण को नियंत्रित कर लेते हैं। हमारे यहां शहरी बसावट में हरियाली अब गमलों में सिमटती जा रही है, जहां तक देखो सिर्फ पत्थर के मकान दिखाई देते हैं जब ये धूप में तपते हैं तब हम छाया ढूंढते हैं और यह छाया देने वाले वृक्ष हमें दूर-दूर तक दिखाई नहीं देते।
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर
हटाएंआत्मकेंद्रित होना और सामाजिकता से दूर जाना एक कारण है l सुन्दर l
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर
हटाएंभारत में अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि और शिक्षा व स्वास्थ्य के प्रति सरकारी उदासीनता पर्यावरण के प्रति सचेत होने का विचार एक सीमित वर्ग तक समेट रही है जबकि यह तो जनजन का विषय होना चाहिए.
जवाब देंहटाएंविचारणीय एवं सारगर्भित लेख.
सहृदय आभार आदरणीय वास्तव में यह चिंतनीय प्रश्न है। पर्यावरण संरक्षण किसी एक व्यक्ति या विशेष वर्ग का कार्य नहीं है।लोग आज वातावरण के प्रति इतने उदासीन है कि उन्हें अपने अलावा किसी से कोई मतलब नहीं पता नहीं हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या देकर जाएंगे..??आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर
हटाएंवाह! सखी ,बहुत खूब! विचारणीय प्रश्न है जिसका हल एकजुट होकर इस ओर ध्यान देने से होगा ....हर एक इंसान को जिम्मेदारी समझनी होगी ।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है।एक जुट होकर किया गया छोटा सा प्रयास भी स्थिति में बदलाव ला सकता है। सादर
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर आलेख
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय सादर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है।
हटाएंसुंदर,रोचक और बहुत कुछ सिखाता
जवाब देंहटाएंयात्रा संस्मरण
सहृदय आभार आदरणीय सादर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है।
हटाएंबहुत सटीक सुंदर एवं सारगर्भित लेख ।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है
हटाएंReally nice and true concept di
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