ध्वस्त होती सर्जना






शब्द भेदी बाण चलते

टूटती हर वर्जना

रक्त रंजित प्रेम तड़पे

क्रोध की सुन गर्जना ।


टूट बिखरे नीड़ सारे,आँधियां ऐसी चली।

सूखते मधुवन यहाँ पर,आग कैसी ये जली।

मेघ भी अश्रु बहाते,और धरा मृत सी पड़ी।

स्वार्थ शासक बन गया,लोभ की कीलें गड़ी।


रोप दी विष बेल ऐसी

ध्वस्त होती सर्जना

रक्त रंजित प्रेम तड़पे

क्रोध की सुन गर्जना।


मीत सच्चे स्वप्न से हैं,प्रीत भी बदली हुई।

कौन रांझा हीर कैसी, पहेलियां उलझी हुई।

पत्थरों से उर हुए हैं,तन दिखें बस फूल से।

आचरण ओछे हुए हैं,रिश्ते बने सब धूल से।


भोगवादी संस्कृति में

 त्याग संन्यासी बना।

रक्त रंजित प्रेम तड़पे

क्रोध की सुन गर्जना।


काल ये कैसा समक्ष है,चूल्हों में सारे घर जले।

वो छतें अब मिट गईं हैं,प्रेम फूला जिनके तले।

ठौर छीनी तरुवरों की,दरबदर उनको किया।

जिंदगी का मोल भूले,करुणा का बुझता दिया।


सूर्य डूबा सत्य का लो

घिर रहा है तम घना।

रक्त रंजित प्रेम तड़पे

क्रोध की सुन गर्जना।


अभिलाषा चौहान

स्वरचित 








टिप्पणियाँ

  1. अभिलाषा जी, शाइनिंग इंडिया, विश्वगुरु भारत, धन्यास्तु ते भारत भूमि भागः के बारे में ऐसे घोर निराशावादी विचार?
    देशभक्त आपके विरुद्ध एफ़आईआर दर्ज करा दें तो मुझे आश्चर्य नहीं होगा.
    वैसे ऐसी गुस्ताखियाँ मैं भी यदा-कदा करता रहता हूँ.
    आपके साहस को नमन !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी त्वरित प्रतिक्रिया और उत्साह वर्धन के लिए सहृदय आभार आदरणीय सादर।जब आपको अपना गुरु मान लिया है तो गुरु के बताए पथ पर ही तो चलूंगी।आपकी रचनाएं पढ़कर ही तो साहस मिलता है।ऐसे साहसी और खरी-खरी कहने वाले गुरु को कोटि-कोटि प्रणाम।

      हटाएं
  2. समसामयिक परिस्थितियों को इंगित करती सराहनीय अभिव्यक्ति।
    सादर।
    ----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १० अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. सहृदय आभार आदरणीय सादर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है।सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर सार्थक रचना

    जवाब देंहटाएं
  5. काल ये कैसा समक्ष है,चूल्हों में सारे घर जले।

    वो छतें अब मिट गईं हैं,प्रेम फूला जिनके तले।
    बहुत ही सटीक सामयिक...
    लाजवाब रचना 🙏🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया पाकर सृजन सार्थक हुआ।सादर

      हटाएं
  6. सार्थक भाव! सामायिक चिंतन परक शानदार सृजन सखी बहुत सुंदर नवगीत बना है, सटीक व्यंजनाएं।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार सखी
      आपकी प्रतिक्रिया पाकर सृजन सार्थक हुआ,सादर

      हटाएं
  7. उत्तर
    1. सहृदय आभार प्रिय शिवम जी।आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है।सादर

      हटाएं
  8. टूट बिखरे नीड़ सारे,आँधियां ऐसी चली।
    सूखते मधुवन यहाँ पर,आग कैसी ये जली।
    मेघ भी अश्रु बहाते,और धरा मृत सी पड़ी।
    स्वार्थ शासक बन गया,लोभ की कीलें गड़ी।
    वाह वाह वाह क्या लिखा है... बहुत सुंदर 🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार प्रिय हरीश जी आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत हैं।सादर

      हटाएं
  9. वाह! सखी ,क्या बात है ..बहुत खूब..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार प्रिय सखी आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है।सादर

      हटाएं

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