मन की मन में मत रहने दो


मेरे अपने विचार 




जीवन कितना भी निष्ठुर हो,

हालत कितने भी अस्थिर हों।

चाहे घोर निराशा घेरे हो,

तू हार नहीं तू हार नहीं।


कहना सरल है लेकिन करना भी मुश्किल नहीं है।आज पढ़ने वाले बच्चों को जीवन हारते देखतीं हूं तो सोच में पढ़ जाती हूं,ये कैसा समय है,कैसी परवरिश है कि बच्चे संघर्ष नहीं कर पा रहे।कोटा कोचिंग सेंटरों के लिए विख्यात है। यहां पूरे देश से बच्चे पढ़ने आते हैं। माता-पिता बड़ी उम्मीदों से बच्चों को पढ़ने भेजते हैं।सबकी यही चाह होती है कि बच्चा डाक्टर बने या इंजीनियर बने,या उच्च पदों पर आसीन हो। माता-पिता उम्मीद तो कर लेते हैं,पर बच्चे का मन नहीं पढ़ पाते।वो घर से दूर रह पाएगा या नहीं?वह इतनी मेहनत कर पाएगा या नहीं?उसके साथ वहां क्या हो रहा है?क्या वह स्थितियों के अनुसार खुद को ढाल पाने में सक्षम है या नहीं?ऐसे बहुत सारे प्रश्न हैं जिनका जबाव शायद किसी के पास नहीं है।आए दिन बच्चे आत्महत्या कर रहें हैं, जिंदगी का मोल समझे बिना कैसे ये बच्चे अपने जीवन का अंत कर देते हैं और क्यों?इसका जबाव शायद उनके माता-पिता के पास भी नहीं है।

       सब कुछ अच्छा है लेकिन फिर भी बच्चे संघर्ष नहीं कर पा रहे क्यों?

यह यक्ष प्रश्न है। आजकल बच्चे अपने मन की बात खुलकर माता -पिता से नहीं कह पाते, उनमें साहस का अभाव है, सहनशक्ति का अभाव है।कारण है कि हम उनको इन चीजों का महत्व ही नहीं समझा पा रहे।उनके पैदा होते ही हमारे मन में जो उम्मीद पलती है कि हमें अपने बच्चे को सफल देखना है और ये सफलता उसे हर हाल में हासिल करनी है चाहे कुछ भी हो जाए उसे डाक्टर या इंजीनियर ही बनना है।उसे वो सपने पूरे करने हैं जो उसने नहीं उसके माता-पिता ने देखे हैं और बच्चे जब इस अपेक्षा को पूरा नहीं कर पाते तो बस एक ही पंक्ति लिखकर अपनी इहलीला समाप्त कर देते हैं -

"आय एम साॅरी मम्मी-पापा"

 "किस बात की माफी मांगते हैं ये बच्चे..?ये जो जीवन में कुछ भी कर सकते हैं वो इस मार्ग को क्यों चुनते हैं..?इसकी मुझे तो यही वजह नजर आती है कि हम माता -पिता तो बन गए पर बच्चों के मन को पढ़ने की महारत हासिल ना कर सके।

हमें बच्चों की अपेक्षाओं पर खरा उतरना चाहिए। हमें उन्हें ऐसी परवरिश देनी चाहिए कि वे हमसे कोई बात ना छिपाएं।उनके मन में विश्वास जगाना होगा कि चाहे कुछ भी हो,हम उनके साथ हैं।उनकी तकलीफों को उनके कहे बिना समझना होगा। बच्चे तभी कुछ छिपाते हैं जब हम उन्हें ऐसा माहौल देते हैं कि जहां यदि उन्होंने अपनी कमजोरी या अपनी असफलता जाहिर की तो उन्हें नीचा देखना पड़ेगा।

 प्रतिस्पर्धा के इस युग में महत्त्वाकांक्षी होना ठीक है लेकिन ये महत्त्वाकांक्षा जिंदगी से बढ़कर नहीं है ये बात उन्हें समझानी होगी।बच्चे कालेज में हो या कोचिंग सेंटर में,स्कूल में हों या आफिस में हर जगह उनकी रैगिंग करने वाले मौजूद हैं,हर जगह उन्हें परेशान करने वाले मौजूद हैं। आजकल तो यौन शौषण भी आम हो गया है।इसके अलावा क्षणिक आकर्षण को प्रेम समझ कर अपने लक्ष्य से भटकना और गलती का अहसास होने पर स्वयं को दोषी मानना।ये सब बातें बच्चे भुगतते हैं पर बताते नहीं। लेकिन जब बच्चा इन सबसे गुजरता है तो उसके व्यवहार में परिवर्तन आता है।उसके व्यवहार के परिवर्तन को अनदेखा ना करें,इस समय ही उसे सबसे ज्यादा आपकी जरूरत होती है।उसे उसके हाल पर छोड़ देना ही सबसे बड़ी ग़लती होती है।ऐसी गलतियों से बचें।


जीवन मिलता है मुश्किल से,

ये बात समझ ले तू दिल से,

यूं हार नहीं तू हिम्मत को

ना भटको तुम यूं मंजिल से।


मौत तो आनी है इक दिन,

तू हंस के जी ले ये पल छिन।

मेहनत से डर कर मत भागो,

खुशियां जीवन में हैं अनगिन।


मन की मन में मत रहने दो,

दिल कहता है जो कहने दो।

सपने तेरे अपने तेरे,

इस पीड़ा को बस बहने दो।


अभिलाषा चौहान 





टिप्पणियाँ

  1. बच्चों की परवरिश के समय बचपन से ही बच्चों को सिखाना चाहिए, चाहे परिस्तिथि कैसी भी हो ..निराश नहीं होना है...चिंतन परक लेख

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    1. सहृदय आभार सखी सादर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है

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  2. क्यों डरें ज़िन्दगी में क्या होगा

    कुछ ना होगा तो तज़रूबा होगा

    सारी समस्या इसमें है कि हम मछली को पेड़ पर चढ़ना सिखाते हैं ।।।।

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  3. उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर

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  4. सार्थक चिंतन देता लेख , सार्थक सुंदर रचना सखी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार सखी सादर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है

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