पेट की आग
देखा मैंने धूप को काँपते
सूर्य को ऊँघते
कोहरे की रजाई में लिपटे
पूस की शीत से डरे हुए
अलसाए और दुबके!
देखा मैंने चिथड़ों में लिपटे
दो जून की रोटी के लिए
शीत को धता बताते
कंपकंपाते हाड़ों को......
भीषण शीत से
करते दो-दो हाथ।
उनके बहते श्वेद के समक्ष
सूर्य भी मान लेता हार
मौसम उनके लिए
कहां होते हैं...!!
उनके लिए होती है
पेट की आग ..…
जिसके के समक्ष
सूर्य की तपिश
शीत की बंदिश
बेमानी हो जाती है
देखा मैंने गर्म कपड़ों में
बदन को छिपाए
उन अमीरों को
जिन्हें फुटपाथ पर
पड़ा कंपकंपाता जीवन
बदनुमा धब्बा लगता है
एसी कमरों में और कारों में
मौसम की मार से पीड़ित
जीवन के संघर्ष से अपरिचित
संवेदना हीन
कहां समझ पाते हैं
उनकी पीड़ा...!!
जहां एक-एक रोटी
के आगे फीकी है
मौसम की मार
जीवन यहीं पर खिलता है
नेह भी यहीं पर पनपता है
समभाव से अपनाते
सुख-दुख
जो हैं इनके सहभागी
अविचल अडिग मुस्कुराते
ये हाड़-मांस के पुतले
संघर्ष के प्रतीक
हंस कर सहते मौसम की मार।
अभिलाषा चौहान
व्वाहहहहहहहह
जवाब देंहटाएंकॉपी प्रोटेक्टेड कर दिए न
आभार
सहृदय आभार आदरणीया दीदी आपकी प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हुई। कोशिश तो की है जितना आता है उसके हिसाब से।
हटाएंयशोदा ...... आप तो प्रोटेक्ट करा कर चली गयीं ....... अब यहाँ से मैटर कैसे लेंगे ...... आप भी कुछ गज़ब नहीं करतीं ?
हटाएंनहीं हुई है दीदी
हटाएंकहीं गलती हुई है
सखी अभिलाषा जी से
रचनाओं की महक
बता देती है कि
ये रचना किसकी है
सादर
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 08 जनवरी 2023 को साझा की गयी है
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सहृदय आभार आदरणीया सादर
हटाएंअमीर - गरीब की ज़िंदगी के फर्क को कहती सच्ची कविता ।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीया दीदी आपकी प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हुई और मुझे प्रोत्साहन।
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सादर
हटाएंवाह!सखी ,बेहतरीन सृजन..
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी
हटाएंसादर
जीवन की विषमताओं को बयान करती रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय सादर
हटाएंआपकी लिखी कोई रचना सोमवार 9 जनवरी 2023 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
सहृदय आभार आदरणीया सादर
हटाएंअगर आप ये प्रोटेक्शन लगाये रखेंगे तो लिंक लेना आगे से मुश्किल होगा ....... बहुत सी पोस्ट इसी कारणवश छोड़ दी जाती हैं .
जवाब देंहटाएंजी आदरणीया आपके सुझाव पर अमल करूंगी।
हटाएंभीषण शरद में पेट की आग।
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना 👌👌
सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंएसी कमरों में और कारों में
जवाब देंहटाएंमौसम की मार से पीड़ित
जीवन के संघर्ष से अपरिचित
संवेदना हीन
कहां समझ पाते हैं
उनकी पीड़ा...!!
जहां एक-एक रोटी
के आगे फीकी है
मौसम की मार
वाह!!!!
बहुत सटीक...
सुविधासंपन्न लोग क्या समझेंगे पेट की आग ।
लाजवाब सृजन ।
सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंफुटपाथ पर जीवन बिताते लोगों का दर्द मजबूरियां .. ह्रदय स्पर्ष चित्रण ..
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर
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