क्यों इतने हम मजबूर हुए


अपने अपनों से दूर हुए

सपने सारे फिर चूर हुए

विपदा कैसी ये आन पड़ी

क्यों इतने हम मजबूर हुए।


साँसों पे तलवारें लटकी है

आँखें धड़कन पर अटकी है

हम रोएँ या फिर सिर पटके

जीवन की राहें  भटकी है।


आँखों के आँसू सूख चले

मन में डर का बस भाव पले

प्रभु पत्थर के बनकर बैठे

जीवन जलता अंगार तले।


कैसे मन में कोई धीर धरे

ये घाव सदा रहते हैं हरे

इक सूनापन इक सन्नाटा

खुशियों के कैसे फूल झरें।


पर धीरज मन में रख लेना

साहस को हार नहीं देना

ये समय गुजर ही जाएगा

जीवन तो चलता ही है ना।


हम जीतेंगे फिर ये बाजी

कर लो बस अपना मन राजी

हिम्मत से बढ़ना सब आगे

ये काल बनेगा फिर माजी।


माजी-अतीत, भूतकाल


अभिलाषा चौहान









टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 3020...अपना ऑक्सीजन सिलिंडर साथ लाइए!) पर गुरुवार 6 मई 2021 को साझा की गई है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. ये वक्त भी गुजर जाएगा -
    बस इसी आस पर जीवन टिका है।
    पर जो पौधे बढ़ने से पहले ही मुरझा रहे हैं, जो असमय ही काल के ग्रास बन रहे हैं उनका क्या ?
    सकारात्मक ही सोच रहे हैं परंतु आस पास होनेवाली घटनाएँ कभी कभी निराश कर देती हैं।
    कैसे मन में कोई धीर धरे
    ये घाव सदा रहते हैं हरे
    इक सूनापन इक सन्नाटा
    खुशियों के कैसे फूल झरें।

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    उत्तर
    1. सही कहा आपने सखी,समय ही ऐसा है।
      निराशा तो हावी होती ही है पर निराशा संकट के समय सोच-विचार की क्षमता छीन लेती है इसलिए निराशा से बचना ही होगा।सादर


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  3. जी बहुत ही बढ़िया।
    अभी की इस परिस्थिति में मन बहुत विचलित और परेशान है....पर आपकी यह रचना हौसला दे रही है कि सब जल्दी ठीक होगा। मन को सांत्वना मिला। बेहतरीन!!!

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    उत्तर
    1. जी सही कहा आपने अगर हम संकट का सामना करने से पहले ही घबरा जाएं तो
      हार निश्चित है।सावधानी , सतर्कता ,साहस धीरज ही इस समय सच्चे साथी है।

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  4. आदरणीया मैम, कोरोना काल की दुखद परिस्थिति को दर्शाती हुई और मन को धीरज बँधाती हुई एक बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना । हृदय से आभार व आपको प्रणाम ।

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    1. प्रिय अनंता समय कठिन है आने वाले पल में क्या होगा इस डर की जगह हम उस पल को जिएँ जो सामने है।विषम परिस्थितियों में डरने से भला क्या हासिल होगा।मास्क ही तो सही तरीके से लगाना है।यदि लोग लापरवाही न करें तो हम इस बीमारी से जीत सकते हैं।

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  5. कैसे मन में कोई धीर धरे? यही आज का सच है अभिलाषा जी जो आपने इस उत्कृष्ट कविता द्वारा कह दिया है। समय एक औषध-लेप अवश्य है किंतु उसके द्वार प्रत्येक घाव भर जाए, आवश्यक नहीं। और घाव भर जाने के उपरांत भी चिन्ह तो सदा के लिए रह ही जाते हैं जिन पर दृष्टि पड़ते ही टीस पुनः उभर आती है। धीरज इसलिए नहीं रखना है कि यह कोई समाधान है बल्कि इसलिए रखना है क्योंकि और कोई दूसरा उपाय नहीं है।

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    1. बिल्कुल सत्य कहा आपने आदरणीय 🙏 कठिन समय का सामना साहस से करके समस्या से लड़ा जा सकता है। जीवन-मृत्यु तो ईश्वर के हाथ हैं सावधानी और सतर्कता से हम इस बीमारी से बचें रह सकते है।मनोबल कमजोर होने से छोटी बीमारी भी बड़ी हो जाती है।

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  6. आशा का संचार करती बहुत सुंदर रचना।

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  7. सहृदय आभार शिवम जी🙏 सादर

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  8. निराश के इन पलों में आशा का दीपक जला कर रखना है, जो चले गए उनकी याद को थाती बनाकर, जो हैं उनकी सुरक्षा का इंतजाम करना है

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  9. हम जीतेंगे फिर ये बाजी

    कर लो बस अपना मन राजी

    हिम्मत से बढ़ना सब आगे

    ये काल बनेगा फिर माजी।

    .. निराशा में आशा का संदेश देती सुंदर भावपूर्ण रचना ।

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  10. पर धीरज मन में रख लेना
    साहस को हार नहीं देना
    ये समय गुजर ही जाएगा
    जीवन तो चलता ही है ना।

    आज के हालातों में ऐसी पंक्तियाँ ही ढाढस दे पाती हैं... सुन्दर रचना....

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  11. ओह ... क्यों इतने मजबूर हुए .... वक़्त न जाने क्या दिखाना चाहता है .... भावपूर्ण अभिव्यक्ति .

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  12. आज जो गुज़र रही है उस में सब के होश गुम है
    हम और कुछ नहीं कर सकते एक आशा का दीपक तो जरा भी सकते हैं कोशिश करें जो को चुके उससे ज्यादा न खोना पड़े ।
    आशा का संचार करती रचना सखी।

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