सवैया छंद (गोपी व्यथा)


सवैया छंद

1.

मुरली बजती सुन माधव की, सखियाँ यमुना तट दौड़ चली।

अखियाँ तरसे हरि दर्शन को, मन में पलती इक आस भली।

मन में बसते बस श्याम सखी,उनसे मिलना यह चाह पली।

दिन-रात बसे छवि नैनन में ,उनसे अनुराग विराग जली।


2.

भँवरे सम श्याम सखी लगते, रस जीवन का सब लूट गए।

जबसे हमको वह छोड़ दिए ,सुख तो हमसे सब छूट गए।

लिखदीं पतियाँ उनको कितनी, कितने सपने अब टूट गए।

लगता अब जीवन शून्य हुआ, मुझसे जबसे वह रूठ गए।


अभिलाषा चौहान

स्वरचित मौलिक


टिप्पणियाँ

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१७-०४-२०२१) को 'ज़िंदगी के मायने और है'(चर्चा अंक- ३९४०) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।

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  2. लिखदीं पतियाँ उनको कितनी, कितने सपने अब टूट गए।

    लगता अब जीवन शून्य हुआ, मुझसे जबसे वह रूठ गए।---अच्छी पंक्तियां हैं

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  3. बहुत ही मार्मिक गोपी व्यथा प्रिय अभिलाषा जी। सब रस लूट श्याम पधारे, सखियाँ राह निहारें
    एक नारी ही दूसरी नारी के मन की पीड़ा समझ सकती है। बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं🙏 ❤❤🌹🌹

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    1. सहृदय आभार प्रिय रेणू बहन आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हुई 🙏🌹 सादर

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  4. एक लहर समय की मिलवाती,
    दूजी दूर ले जाती,
    निष्ठुर कान्हा कब पढ़ पाते
    राधा के मन की पाती,
    जाने किसकी खातिर माधव
    मुरली मधुर बजाए ,
    पुकार थकी तरसी राधा
    छलिया कहाँ बस में आये!

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    उत्तर
    1. वाह कितनी सुन्दर भावभीनी पंक्तियां बहना सच में छलिया कहाँ बस में थे किसी के

      हटाएं
  5. लगता अब जीवन शून्य हुआ, मुझसे जबसे वह रूठ गए।
    बहुत सुन्दर भाव 👌

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  6. कृष्ण विरह में तड़पती गोपियों की व्यथा कहती अद्भुत सृजन सखी

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  7. कृष्ण के प्रति गोपियों के विरह भाव खूबसूरती से लिखा गया।

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    1. सहृदय आभार आदरणीया 🙏🌹 सादर सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए

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