उधड़ी हुई सी जिंदगी

उधड़ी हुई सी जिंदगी 

पैंबंद से ढक गई

मुस्कुराहटों पर पर्तें

उदासी की रुक गई।


आँखों में सपनों ने जब

डाला न बसेरा

उजड़े हुए चमन में अब

होगा न सवेरा

जलते हुए इन गमों से

देखो उम्र पक गई।।


कोशिशें भी हारकर यूँ

मुंह फेर कर बैठीं

खुशियाँ गुरूर करती सी

रहती हैं बस ऐंठी

मरम्मत करें अब कितनी

ये मशीन थक गई।।


बदली नहीं हैं सूरतें

बुनियाद है बोलती 

ये दुनिया कैसी बनिया

तराजू में तोलती

वीराना ही पसरा था

नजर जहाँ तलक गई।।


अभिलाषा चौहान








टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (07-04-2021) को  "आओ कोरोना का टीका लगवाएँ"    (चर्चा अंक-4029)  पर भी होगी। 
    --   
    मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। परन्तु प्रसन्नता की बात यह है कि ब्लॉग अब भी लिखे जा रहे हैं और नये ब्लॉगों का सृजन भी हो रहा है।आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --  

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  2. वाह बहुत ही मार्मिक लेखन,लाज़बाब

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  3. अभिलाषा दी, निराशा कुछ ज्यादा ही लग रही है। इतनी निराशा सेहत के लिए अच्छी नही है।

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    उत्तर
    1. सहृदय आभार सखी 🙏 पर ये निराशा मेरी नहीं उन लोगों की है जो मायूसियों से घिरे हैं।

      हटाएं
  4. वाह बहुत खूब मार्मिक, जिंदगी के रंग हैं ही ऐसे, ये दुनिया सच स्नेह से व्यापार पर

    जवाब देंहटाएं
  5. हृदय की वेदना हर पंक्ति में परिलक्षित हो रही है । मर्मस्पर्शी रचना ।

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  6. किसी सत्य को प्रकट कर दिया हो... अत्यंत भावपूर्ण ।

    जवाब देंहटाएं
  7. भावों की सुंदर एवम मर्म स्पर्शी अभिव्यक्ति । सुंदर सृजन ।

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  8. हृदय स्पर्शी गीत कुछ नैराश्य लिए।
    शानदार सृजन।

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