अंधा बाँटे …????
पुरखों के त्याग सूद संग जो वसूलते हैं।
जनता की भावना से खेल नित खेलते हैं।
श्वेत वस्त्रों में छिपे काले उनके कारनामे
कागज़ों में देश का विकास वो तोलते हैं।
सत्ता- शक्ति का चहुँओर बोलबाला है।
झूठों की जय, सच्चों का मुँह काला है।
भ्रष्टाचार के वस्त्र तंत्र पहने बैठा है।
आदमियत पर अंधेपन का मुखौटा है।
भानुमती का कुनबा गठजोड़ कर बैठा है।
हर कोई एक-दूसरे से लगे ऐंठा-ऐंठा है।
जाति धर्म असमता की बढ़ती लकीर है।
सत्य- ईमान आज सबसे बड़े फकीर है।
अंधा बाँटे रेवड़ी अपनों को देता है।
योग्य बेचारा सिर धुनकर रोता है।
अपनों में बाँटी जाती खूब मलाई है।
ईमान - योग्यता ने मुँह की खाई है।
अंधों के आगे नैना वाले हार मान बैठे हैं।
रोते-रोते अंधों के तलवे ही चाट बैठे हैं।
अंधों के राज्य में आँखों का काम है।
लाठी जिसके हाथ बस उसका ही नाम है।
आजादी की छाँव में धूप से तन सेंके हैं।
जिंदगी की नाव को बिन पानी खींचें हैं।
बँटती जो रेवड़ियाँ , नंबर कहाँ आता है।
बैठै-बैठे अंधों का बस मुँह देखा जाता है।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
बहुत खूब....,सुंदर सृजन सखी
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२० जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हम अपने त्यागी भाग्य-विधाताओं पर ऐसा व्यंग्य सहन नहीं कर सकते.
जवाब देंहटाएंहमारे सब नेता दूध के धुले हैं.
अब अगर ये कमबख्त दूध ही सिंथेटिक है तो इसमें उनका क्या दोष है?
वाह, आदरणीय 🙏 कमाल का व्यंग्य किया आपने आभार आपका
हटाएंWah Anuradha ji Sunder prstuti
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सखी
हटाएंजाति धर्म असमता की बढ़ती लकीर है।
जवाब देंहटाएंसत्य- ईमान आज सबसे बड़े फकीर है।
वाह!!!
बहुत सटीक , सार्थक और सारगर्भित सृजन
वाह!!!
एकदम सीधी सच्ची बात कहती कविता जो मेरी अब तक पढ़ी गयी बेहतरीन कविताओं मे से एक है।
जवाब देंहटाएंRecent Post शब्दों की मुस्कराहट पर उस कील का धन्यवाद:)
सहृदय आभार संजय जी 🙏 आपकी रचना पढ़कर आनंद आ गया।
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