जीवन में संचित किया है गरल
जीवन-पथ कब हुआ है सरल,
हर मोड़ पर पीना पड़ता है गरल।
छल-छंदों से भरी इस दुनिया में,
धोखा मिलता रहता हर पल।
सुख के दिन कब रहते हैं अटल,
दुख में भला कौन रहा अविचल।
घिर कर आते हैं संकट के बादल,
उलझे जीवन जिसमें पल-पल।
कभी मन घबराए न पाता कल,
कभी हालातों से हो जाता विकल।
आंखों से गिरे आंसू कितने,
कौन साथ रहा है कब हरपल।
ये जीवन चक्र न रूका एक पल,
चाहे जीवन में हो कितनी हलचल।
न समय पर किसी का जोर चला,
न बांध सका कोई मुट्ठी में पल।
कब हाथ से सब जाएगा निकल,
किसके लिए करे इतने तूने छल।
अमृत तुझको फिर भी न मिला,
जीवन में बस संचित किया है गरल।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
हर मोड़ पर पीना पड़ता है गरल।
छल-छंदों से भरी इस दुनिया में,
धोखा मिलता रहता हर पल।
सुख के दिन कब रहते हैं अटल,
दुख में भला कौन रहा अविचल।
घिर कर आते हैं संकट के बादल,
उलझे जीवन जिसमें पल-पल।
कभी मन घबराए न पाता कल,
कभी हालातों से हो जाता विकल।
आंखों से गिरे आंसू कितने,
कौन साथ रहा है कब हरपल।
ये जीवन चक्र न रूका एक पल,
चाहे जीवन में हो कितनी हलचल।
न समय पर किसी का जोर चला,
न बांध सका कोई मुट्ठी में पल।
कब हाथ से सब जाएगा निकल,
किसके लिए करे इतने तूने छल।
अमृत तुझको फिर भी न मिला,
जीवन में बस संचित किया है गरल।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
अमृत तुझको फिर भी न मिला,
जवाब देंहटाएंजीवन में बस संचित किया है गरल।
छल-प्रपंच करने वाले अंततः विफल हो ही जाते हैं। कृष्णा और शकुनी ऐसे उदाहरण हैं। कृष्ण ने जनहित में छल किए, अतः उसे प्रेम से लोग छलिया कहते हैं , जब कि शकुनि ने
स्वहित( प्रतिशोध) के लिए छल किया। उसे अनादर की दृष्टि से देखा जाता है ।
बहुत ही सार्थक रचना है दी, प्रणाम।
सहृदय आभार आदरणीय शशि भाई,आपकी
हटाएंसार्थक प्रतिक्रिया हेतु।सादर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 20 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीया यशोदा जी
हटाएंबहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏
हटाएं
जवाब देंहटाएंकब हाथ से सब जाएगा निकल,
किसके लिए करे इतने तूने छल।
अमृत तुझको फिर भी न मिला,
जीवन में बस संचित किया है गरल।
बहुत ही सुंदर रचना, अभिलाषा दी।
सहृदय आभार प्रिय ज्योति
हटाएंये जीवन चक्र न रूका एक पल,
जवाब देंहटाएंचाहे जीवन में हो कितनी हलचल।
न समय पर किसी का जोर चला,
न बांध सका कोई मुट्ठी में पल।
बहुत सुंदर सृजन सखी
सत्य यही है सखी, सहृदय आभार
हटाएंकब हाथ से सब जाएगा निकल,
जवाब देंहटाएंकिसके लिए करे इतने तूने छल।
अमृत तुझको फिर भी न मिला,
जीवन में बस संचित किया है गरल।
बहुत सार्थक चिंतन सखी, यदि इंसान इतना ही समझ ले तो उसकी भटकन स्वतः खत्म हो जाए।