कीमो एक अनुभव

आज-कल मुझे अस्पतालों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं,क्योंकि मेरी मां को कैंसर हुआ है
और उनकी कीमोथेरेपी चल रही है। मैं एक
जीवन को बचाने की जद्दोजहद में लगी हूं।
आपको यह सब बता रही हूं,इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि मैं अपना दुखड़ा
आपसे रो रही हूं,बल्कि वहां जो अनुभव मुझे हुआ,उसे आपसे बांटना चाहती हूं।

मैंने वहां जाकर देखा कि जिंदगी की कीमत क्या है?? और कितनी बेवस है जिंदगी
हर तरह के कैंसर से पीड़ित लोग,दर्द सहते,मौत से लड़ते और कीमो कीे
असहनीय तकलीफ को झेलते,कराहते,
बस एक आस लिए कि शायद...।

कीमो सिर्फ कैंसर पीड़ितों की नहीं होती बल्कि उनके परिजनों की भी होती है।
अपनों की जिंदगी बचाने के लिए बेकरार भागते-दौड़ते,कराहते मरीजों के बीच पता चलता है कि जिंदगी का क्या मोल है??

एक ओर चलती है जिंदगी की जद्दोजहद और दूसरी ओर मानव इसी ज़िंदगी को किस तरह जहन्नुम बनाता है। मैं वहां बैठे-बैठे
यही सोचती रहती हूं।जो आदमी मृत्योन्मुख होता है,उसे बचाने की हर संभव कोशिश
और जो जीना चाहता है,खुश रहना चाहता
 है,उसे मृत्यु-मुख में ढकेलने की कोशिश!!
यह फलसफा मेरी समझ से परे है।

मेरे कहने का मतलब है कि क्यों हम स्वार्थ में अंधे होकर, धन-संपत्ति के लालच में
प्राइवेसी के नाम पर, अपनों से ही लड़ते-झगड़ते हैं?
क्यों हम स्व-सुख को सर्वोपरि मानते हैं,क्यों
अपने ही रिश्ते हमें बोझ लगते हैं,क्यों हम खुश रहना नहीं जानते?
यह जिंदगी ईश्वर की ओर से हमें वरदान स्वरूप मिली है और इसे हम ही अभिशाप
क्यों बना लेते हैं!!इस वरदान का आनंद
उठाइए, जिंदगी को कुरूक्षेत्र मत बनाइए।
किसी चीज के हाथ से निकल जाने की
आशंका मात्र से हमें डर लगता है, लेकिन उसी को सामने देख कर अनदेखा करने की आदत हमें बदलनी चाहिए।

ये कैंसर तो फिर भी उपचार से ठीक हो जाता है,हां उपचार कष्टकारी है,महंगा है,
लेकिन उस कैंसर का क्या जिसे हमने अपने
जीवन में खुद ही पैदा किया है,फिर चाहे वह
किसी भी प्रकार की नशे की आदत हो, तनावपूर्ण जीवन-शैली हो, दूषित खान-पान
हो,या दूषित पर्यावरण हो।ये सब हमारी
ही देन हैं और इस पर नियंत्रण भी हम ही कर सकते हैं।

जो कीमो कैंसर के मरीज की होती है,वही हम सबकी भी होती है,इस स्वार्थ की भट्टी में
जलकर,जीवन में क्लेश उत्पन्न कर,तनाव
युक्त जीवन-शैली से,जीवन की उपेक्षा से,
और पर्यावरण से खिलवाड़ करके और हम रात-दिन इसका दर्द भोगते हैं,पर सुधरते
नहीं।कैंसर बहुत तेज़ी से पैर पसार रहा है।
और यह मानव के विनाश की कहानी लिख
रहा है।

हो सकता आप मेरे कथन से सहमत न हों,पर यह मेरा अनुभव है, जिंदगी को खुशगवार बनाइए,हरपल को भरपूर जिएं, अपनों के लिए अपनों के साथ,भौतिक
साधनों से मोह मत कीजिए,सब यहीं छूट जाना हैं,बस ये पल ही हैं जो हमारे साथ जाएंगे, इन्हें यादगार और मधुर बनाइए
 सच मानिए जिंदगी को
फूल या कांटा बनाना हमारे ही हाथ में है।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक

टिप्पणियाँ

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 26 अगस्त 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 27 अगस्त 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. गहरा चिंतन से निकला आत्म बोध जो सभी का मार्ग दर्शन कर सकता है ।
    सार्थक सृजन।
    मां के स्वास्थ लाभ के लिए असीम शुभकामनाएं।

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    उत्तर
    1. सहृदय आभार सखी,बस आपकी शुभकामनाएं
      रामबाण की तरह फलीभूत हों,यही आशा है।
      अभी छोटे भाई को खोया था ,दो साल भी पूरे
      नहीं हुए,अब मां,वो ठीक हो जाएं तो भाई के
      बच्चों का जीवन संवर जाएगा।

      हटाएं
  5. असहनीय दर्द होता है जब अपनों का साथ छूटता नजर आता है
    सच मानिए जिंदगी को
    फूल या कांटा बनाना हमारे ही हाथ में है।

    सहमत हूँ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीया दीदी मेरे अनुभव को महत्त्व देने के लिए सहृदय आभार,सादर

      हटाएं
  6. किसी चीज के हाथ से निकल जाने की
    आशंका मात्र से हमें डर लगता है, लेकिन उसी को सामने देख कर अनदेखा करने की आदत हमें बदलनी चाहिए।
    एकदम सटीक...
    जो अपने पास है उसकी हम कीमत नहीं समझते और उसके खो जाने पर आजीवन मलाल में रहते हैं ...
    सच मानिए जिंदगी को
    फूल या कांटा बनाना हमारे ही हाथ में है।
    बहुत सटीक सार्थक चिन्तनीय प्रस्तुति
    भगवान से प्रार्थना है कि माँ को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ दे।

    जवाब देंहटाएं
  7. सहृदय आभार सखी,आपकी शुभकामनाएं अवश्य फली भूत होंगी ,ऐसी ही कामना है क्योंकि दुआ
    भी दवा के समान होती हैं।

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