धर्म-अधर्म
धर्म ,बोलता कर्म की वाणी,
धर्म नहीं कोई कथा-कहानी।
सृष्टि के हर कण में बसे हैं,
जड़-जगंम सब में निखरे है।
बहती हवा दे सबको जीवन,
पानी दे सबको संजीवन।
प्रकृति के जीवों का रक्षण,
धर्म मनुष्य का कर्तव्य-पालन ।
धर्म कहां हमें लड़ना सिखाए,
वह तो कर्म की राह चलाए।
धर्म न करता अपना-पराया,
वह तो सद्भाव का पाठ पढ़ाए।
धर्म में जग-कल्याण निहित है,
इंसानियत श्रेष्ठ धर्म अभिहित है।
लेकिन धर्म पर काली छाया छाई,
धर्म -अधर्म की दूरी मिटाई।
धर्म की ध्वजा उठाकर चलते,
धंधा धर्म को बनाकर रखते।
धर्म कभी न करते धारण ,
उसको ढाल बनाकर चलते।
कर्म रहे जिनके सदा मैले,
ऐशो-आराम के रहे जो चेले।
भोग-विलास में हरदम डूबे,
धर्म को अधर्म बना कर रखते।
जातिवाद का चढ़ा मुलम्मा,
धन से धर्म को करे निकम्मा।
उसके नाम पर लूट मचाएं,
आपस में जनता को लड़वाते।
ऐसे अधर्मी क्या धर्म को जाने,
धर्म का मर्म कहां पहचाने।
धर्म के पथ पर चल न पाएं,
जनता को भ्रम में भटकाएं।
धर्म की है जो असली वाणी,
भूल गए सब हुआ धर्म बेमानी।
************************************************************ धर्म पर पिरामिड
-----***----***-----
है
धर्म
सत्कर्म
सदाचार
मैत्री-करूणा
अहिंसा पालन
सत्यमेव जयते।
है
धर्म
मनुष्य
जीव-दया
वृद्धों की सेवा
कर्त्तव्य-पालन
मातृभूमि की रक्षा।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
धर्म नहीं कोई कथा-कहानी।
सृष्टि के हर कण में बसे हैं,
जड़-जगंम सब में निखरे है।
बहती हवा दे सबको जीवन,
पानी दे सबको संजीवन।
प्रकृति के जीवों का रक्षण,
धर्म मनुष्य का कर्तव्य-पालन ।
धर्म कहां हमें लड़ना सिखाए,
वह तो कर्म की राह चलाए।
धर्म न करता अपना-पराया,
वह तो सद्भाव का पाठ पढ़ाए।
धर्म में जग-कल्याण निहित है,
इंसानियत श्रेष्ठ धर्म अभिहित है।
लेकिन धर्म पर काली छाया छाई,
धर्म -अधर्म की दूरी मिटाई।
धर्म की ध्वजा उठाकर चलते,
धंधा धर्म को बनाकर रखते।
धर्म कभी न करते धारण ,
उसको ढाल बनाकर चलते।
कर्म रहे जिनके सदा मैले,
ऐशो-आराम के रहे जो चेले।
भोग-विलास में हरदम डूबे,
धर्म को अधर्म बना कर रखते।
जातिवाद का चढ़ा मुलम्मा,
धन से धर्म को करे निकम्मा।
उसके नाम पर लूट मचाएं,
आपस में जनता को लड़वाते।
ऐसे अधर्मी क्या धर्म को जाने,
धर्म का मर्म कहां पहचाने।
धर्म के पथ पर चल न पाएं,
जनता को भ्रम में भटकाएं।
धर्म की है जो असली वाणी,
भूल गए सब हुआ धर्म बेमानी।
************************************************************ धर्म पर पिरामिड
-----***----***-----
है
धर्म
सत्कर्म
सदाचार
मैत्री-करूणा
अहिंसा पालन
सत्यमेव जयते।
है
धर्म
मनुष्य
जीव-दया
वृद्धों की सेवा
कर्त्तव्य-पालन
मातृभूमि की रक्षा।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
बेहतरीन सखी 👌
जवाब देंहटाएंसादर
सहृदय आभार सखी
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार
हटाएंसहृदय आभार यशोदा जी 🙏🌷
जवाब देंहटाएंधर्म ,बोलता कर्म की वाणी,
जवाब देंहटाएंधर्म नहीं कोई कथा-कहानी।
लाजबाब ,बहुत ही सुंदर रचना ,सादर नमस्कार
सहृदय आभार सखी
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏
हटाएंदोनों रचनाएँ बहुत अच्छी हैं । पिरामिड विशेष सुंदर लगा
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी
हटाएंधर्म कहां हमें लड़ना सिखाए,
जवाब देंहटाएंवह तो कर्म की राह चलाए।
बहुत खूब....उम्दा रचना
सहृदय आभार रवीन्द्र जी
हटाएंधर्मम बोलता कर्म की वाणी...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.... चिन्तनपरक...।
सहृदय आभार सखी
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