कल,आज और कल
तीक्ष्ण वाणी के प्रहार,
झेलता वह मासूम।
सुबकता,सिसकता,
आंसू पौंछता।
खोजता अपने अपराध,
शनै-शनै मरता बचपन!
आक्रोश का ज्वालामुखी,
उसके अंदर लेता आकार।
शरीर पर चोटों की मार,
बनाती उसे पत्थर!
पनपता एक विष-वृक्ष
जलती प्रतिशोध की ज्वाला!
पी जाती उसकी मासूमियत।
वक्त से पहले ही होता बड़ा,
समझता शत्रु समाज को,
चल पड़ता पाप की राह।
कहलाता अपराधी!
यही तो होता है,
अक्सर मासूमों के साथ,
नहीं होती जिनकी मां!
होता जिनका अपहरण,
वे बेरहम वक्त की चोट से,
बन जाते पाषाण!
समाज लगता शत्रु सम,
लेते प्रतिकार,
बस करते जाते वार!
बिना सोचे बिना समझे,
अंदर की आग!
जलाती उन्हें पल-पल,
जिसमें जल जाता ,
कल आज और कल!!
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
झेलता वह मासूम।
सुबकता,सिसकता,
आंसू पौंछता।
खोजता अपने अपराध,
शनै-शनै मरता बचपन!
आक्रोश का ज्वालामुखी,
उसके अंदर लेता आकार।
शरीर पर चोटों की मार,
बनाती उसे पत्थर!
पनपता एक विष-वृक्ष
जलती प्रतिशोध की ज्वाला!
पी जाती उसकी मासूमियत।
वक्त से पहले ही होता बड़ा,
समझता शत्रु समाज को,
चल पड़ता पाप की राह।
कहलाता अपराधी!
यही तो होता है,
अक्सर मासूमों के साथ,
नहीं होती जिनकी मां!
होता जिनका अपहरण,
वे बेरहम वक्त की चोट से,
बन जाते पाषाण!
समाज लगता शत्रु सम,
लेते प्रतिकार,
बस करते जाते वार!
बिना सोचे बिना समझे,
अंदर की आग!
जलाती उन्हें पल-पल,
जिसमें जल जाता ,
कल आज और कल!!
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
बिल्कुल सच कहा आदरणीया
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन
सहृदय आभार 🙏🌷
हटाएंअक्सर मासूमों के साथ,
जवाब देंहटाएंनहीं होती जिनकी मां!
होता जिनका अपहरण,
वे बेरहम वक्त की चोट से,
बन जाते पाषाण!...जीवित चित्रण
सादर
सहृदय आभार सखी,सादर🙏🌷
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार
हटाएंदिल की गहराई से लिखी हुई
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार
हटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/03/111.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏मेरी रचना को स्थान
हटाएंके लिए
यथार्थ ,बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,स्नेह सखी
जवाब देंहटाएं