प्रेम का ये रूप सच्चा

वो प्रेम के किस्से सुहाने,
जो सुने थे हमने अफसाने।
तोड़ लाना चांद-तारे
देखना सपने सुहाने।

कल्पनाओं की उड़ान ऊंची,
झूठी बातें लगती सांची।
जमीन से कहां जुड़ी थीं,
बातें जो थी बहुत ऊंची।

गृहस्थी से जुड़ा नाता,
प्रेम बना बस समझौता।
छोटी-छोटी ख्वाहिशों को,
पूरी करना मुश्किल होता।

सिमट गई दुनिया पूरी,
चांद-तारों से बन गई दूरी।
फीस,कापी और किताबें,
जरूरतें जो कभी न हो पूरी।

जिम्मेदारियां का बढ़ा जाल,
भूल गए अपना सब हाल।
रोटी, कपड़ा और मकान,
इनके उठ खड़े हुए सवाल।

खुद को यूं भूल जाना,
सपनों का यों दूर जाना।
बन गए रिश्ते नए-नए,
प्रेम का बस बंटते जाना।

कब बीती वह प्रेम-कहानी,
होती गई वे बातें पुरानी।
बीत गई जब सारी जवानी,
बुढ़ापे की दस्तक हुई आनी।

आंखों से कम दिखने लगा,
हाथ भी थोड़ा कंपने लगा।
छड़ी ने दिया जब सहारा,
तब याद आया साथी प्यारा।

तब प्रेम का रूप समझ आया,
साथी का साथ बहुत भाया।
जीवनसाथी की अहमियत को,
बुढ़ापे ने था समझाया।

कहां वे सुहानी प्रेम-कहानी,
जिंदगी से थी अनजानी।
दो लोगों ने शुरू करी जो,
दो लोगों पर खत्म कहानी।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित, मौलिक

टिप्पणियाँ

  1. हर आमोखास की यही कहानी है सखी | बहुत सरल शब्दों में जीवन की दुरूह कथा बांच दी आपने | बेहतरीन रचना

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार प्रिय बहन, बहुत अच्छा लगा आपकी प्रतिक्रिया पाकर , गूगल+ बंद हो रहा है
      इसलिए आपकी पहले की सारी प्रतिक्रियाएं लुप्त
      हो गई, जिन्हें पढ़कर लगता था कि जैसे आपका स्नेह शब्दरूप में बरस रहा हो।अतीव आभार आपका।

      हटाएं
    2. ये स्नेह बना रहेगा सखी | जल्द ही फिर से आपकी रचनाओं को टिप्पणियों से भर दूंगी | मेरा प्यार |

      हटाएं
    3. सस्नेह आभार बहन,यह साथ और आपका प्यार
      यूं ही बना रहे🙏🙏🌷🌷

      हटाएं
  2. आंखों से कम दिखने लगा,
    हाथ भी थोड़ा कंपने लगा।
    छड़ी ने दिया जब सहारा,
    तब याद आया साथी प्यारा।
    उचित कहा आपने दी, प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १४ अक्टूबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,

    जवाब देंहटाएं
  4. बिलकुल सही असली प्यार की पहचान तो जीवन के अंतिम दिनों में ही होता हैं ,परन्तु जिसका साथी बीच राह में ही बिछड़ जाए वो तो इस सच्चे प्यार का रूप देखने से वंचित ही रह जायेगा न ,बहुत सुंदर सृजन सखी

    जवाब देंहटाएं
  5. सही कहा अभिलाषा जी। प्रेम का यह रूप भी सबके नसीब में कहाँ ? बहुत अच्छी रचना।

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह बहुत यथार्थ लिखा है आपने सखी ।
    वाह।
    नोन राई का फेरा है
    क्या है सचमुच प्रेम आखिर तब समझा
    जब सांध्य बेला का डेरा है।
    बहुत खूब।

    जवाब देंहटाएं
  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जिसे देख छाता उल्लास

सवैया छंद प्रवाह

देखूं आठों याम