सरगम ही सरगम है

संगीत के सप्त स्वर,
सुर-ताल-लय का संगम,
आरोह-अवरोह गतिक्रम,
हृदय -भावों का स्पंदन,
छेड़ता है राग मधुर,
बनके जब गीत मुखर,
गूंज उठती है मधुर सरगम।।
वीणा की झंकार में,
बांसुरी की तान में,
मृदंगों की थाप में,
शहनाई की धुन में,
स्वर के आलाप में,
कवि हृदय के विलाप में,
सरगम ही सरगम है।।
धड़कन की गति में,
सांसों की तान में,
जीवन की लय में,
भावों के स्पंदन में
सरगम ही सरगम है।।
सागर की तरंगों में,
गिरते हुए निर्झरों में,
नदिया की कल-कल में,
बहती हुई पवन में,
सरगम ही सरगम है।।
गृहिणी के कार्यों में,
शिशुओं की क्रीड़ाओं में,
कदमों की ताल में
संसार की हर शय में,
गतिमान सरगम है।।
व्यथित हृदय की पुकार में,
भावों के उतार-चढ़ाव में,
कवि की कविता में,
विचारों की सरिता में,
गूंजती सरगम है।।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित

टिप्पणियाँ

  1. अनुराधा जी जीवन में सरगम की परिभाषा को बहुत सुन्दर परिभाषित किया है आपने

    जवाब देंहटाएं
  2. विचारों की सरिता में,
    गूंजती सरगम है।।
    बहुत ही सुंदर और सहज तरीक़े से आपने मानव हृदय के भाव को प्रदर्शित किया है।
    आभार दी।

    जवाब देंहटाएं

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