शिशिर का प्रभाव

शिशिर का प्रभाव
बदले प्रकृति के हाव-भाव
सूर्य को लगी ठंड
आग भी पड़ी मंद
धूप थी कांपती
गर्मी भी मुख ढ़ांपती
शिशिर से थी डर रही
जमने लगे वजूद
कंपकंपाते हाड़
कड़कड़ाती ठंड
था शिशिर बड़ा प्रचंड
फसलों को बना निवाला
खुश हो रहा था पाला
थी ओस भी जमी
वृक्षों की सांस भी थमी
पशु-पक्षी भी व्याकुल से
सूर्य का मुंह ताकते
बादलों के लिहाफ से
सूर्यदेव झांकते
छुड़ा के सबके छक्के
शिशिर ने दिखाए इरादे पक्के
जम रहा था सब कुछ
आदमी के अंदर
था बन गया वह बुत
संवेदनाओं से हो रहित।
ये शिशिर का प्रभाव या
कि आदमी का स्वभाव।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित





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