जीवन में समस्याओं का कारण

  • कभी-कभी मन वैचारिक झंझावातों में घिर जाता है जीवन को लेकर अनेक प्रश्न उठने लगते हैं ? न हमें जन्म से पूर्व का पता होता है और न मृत्यु के बाद का, फिर भी हम इस संसार की माया में उलझ कर जीवन को इस कदर मुश्किल बना लेते हैं कि जीना भूलकर समस्याओं का समाधान करने में पूरी उम्र निकल जाती है। सही मायने में में जीवन को जीना भूल जाते हैं और अंत समय पछताते हैं।    माना कि जीवन जीने के लिए मिला है, तो जियो न, किसने रोका है , किन्तु उसे इतनी  संकीर्ण सोच के साथ मत जियो कि जैसे उस पर तुम्हारा ही एकाधिकार है। सच पूछो तो यही भ्रम  सभी समस्याओं की जड़ है।     अपनी संतान से लेकर निर्जीव वस्तुओं पर एकाधिकार जमाने और उसके लिए लडने की प्रवृति ने मनुष्य को सत्य से भटका दिया है मत भूलो कि ईश्वर ने हमें किसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु मानव जन्म दिया है इसलिए बिना किसी चाह के अपने कर्तव्यों की पूर्ति करो,तभी सच्चा सुख मिलेगा। अभी दूरदर्शन पर एक परिवार का झगड़ा चल रहा था । माता पिता पुत्र से अपेक्षा कर रहे थे कि उन्होंने उसे पढाया लिखाया इसलिए वह धन कमाए और उनकी सेवा करे जबकि पुत्र माता पिता के आए दिन होने वाले झगड़ों और उनके तिरस्कार पूर्ण व्यवहार से परेशान था इसलिए घर छोड़कर साधु बन गया । अब सच क्या है ये तो  नहीं पता पर समस्या पता है और वो हैं 'अपेक्षाएं'। हम जब किसी से कोई अपेक्षा करते हैं और वह पूरी नहीं होती तो क्लेश उत्पन्न होता है। खासकर तब  जब हम अपनी संतानों को एक बैंक समझकर उनके ऊपर किए जा रहे खर्चे का हिसाब किताब रखेंगे और सोचेंगे कि एक दिन ये ब्याज समेत हमें लौटाएंगे तो निश्चित ही समस्याएं उत्पन्न होगी। संतान की परवरिश आपकी जिम्मेदारी है । उसे संस्कारित कीजिए जिम्मेदार बनाइए पर उस पर बोझ मत डालिए क्योंकि जबरन किसी को बंधन में नही बांधा जा सकता और न ही उसे बाध्य किया जा सकता है। मेरा तो यही विचार है आप क्या सोचते हैं वो आप बताइए।

                              अभिलाषा चौहान



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