पर्यावरण दिवस

आज विश्व पर्यावरण दिवस है भाषणबाजी और कई तरह के ढोंग होंगे, पर क्या वास्तव में हम चिंतित हैं,  नहीं ! यदि होते तो पृथ्वी का यह हाल न होता। तापमान में वृद्धि और पीने के पानी की कमी का दंश बडे-बडे बंगलों और एसी में रहने वालों को नहीं झेलना पड़ता। महज कागजी कार्रवाई करके पर्यावरण की सुरक्षा करने वाले नौकरशाहों की कथनी-करनी
में जमीन-आसमान का अंतर है। मानसून पर निर्भर रहने वाले इस देश में पारंपरिक पेयजल  स्रोतों की उपेक्षा ने भयावह जल संकट खड़ा कर दिया है। हम निरंतर धरती का सीना फाड कर जलदोहन कर रहें है , पर कब तक?
 नदियां हमने दूषित कर दी, वन हमने उजाड
दिए, हरे - भरे वृक्षों को काटने में हम तनिक देर नहीं करते और बात करते हैं पर्यावरण की!
बंजर होती धरती किसी को नहीं दिखती, तड़पते पशु-पक्षी किसी को नहीं दिखते, बस खानापूर्ति की जाती है और कुछ नही , नियम बन जाते हैं पालन हो रहा है या नहीं किसी को नहीं देखना  । मैंने बैंगलोर में एक घर देखा जहां घरमालिक ने पेड को काटा नहीं बल्कि छत ऐसे बनवाई की पेड़ घर के अंदर  आ गया
नतमस्तक हो गई उस वृक्षप्रेमी के प्रति। ऐसा जज्बा हो तो बात बने, अंत में
    तपती धरती करे पुकार
    बंद करो ये अत्याचार
   मच जाएगा हाहाकार
    जो न सुनी तुमने मेरी पुकार।।।               (अभिलाषा) 

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