**"व्यथा की कथा" ***

बेटी बनकर पीड़ा पाई,
चिंता बन आंखों में छाई ।
जन्म हुआ तो चिंता आई,
बोझा बन हृदय पर छाई।    
मां-बाप को मिलता है सुख,
बेटी की करके विदाई।
बेटी को क्यों अपना माने,     
बेटी सदा ही रही पराई।                        
                     वधू बन ससुराल में आई,
                  अजनबियों के बीच पराई।
                  कहां खिली'औ'कहां पली,
                 किस्मत देखो कहां ले आई।
                  मात - पिता बहना न भाई,
                  साथ सिर्फ भाग्य का पाई।
                सास-ननद की चढती भृकुटी,                              ससुर गिने क्या नकदी लाई।
                  मनचाहा दहेज न लाई,
              फिर क्यों दुल्हन पिय मन भाई?
 जन्म - जन्म का नाता जोड़ा,       
 जिसने चाहा उसने दिल तोड़ा। 
 तिनका-तिनका अरमानों का,
 तूने सबके लिए छोड़ा।
   सबके लिए जीने वाली,                            अपने लिए जी न पाई।
   नारी ! तू सृष्टि की जननी,
  झोली में पीड़ा भर लाई!
               पुत्रवती युवती बडभागी,
               पुत्र न हो तो बने अभागी।                                   जननी बनकर पीड़ा पाई,
             दुनिया तुझको समझ न पाई ।
            पाल-पोस कर बडा किया जब,
             संतति बन गई स्वयं पराई।
             सही व्यथा'औ 'रही एकाकी,
              झोली में पीड़ा भर लाई।
नारी तेरे कितने रुप,
प्रमुख रूप जननी का।
तब ही तो तूने रूप धरा,                       
इस विस्तृत अवनि का!                           
दुख दूर करे तू सबका।
सब सहकर सुख देती है
जग को महिमा समझ न आई,
जो देखो बन बैठा कसाई।
औरों को सुख देने वाली,                        
झोली में पीड़ा भर लाई।           
                  सही व्यथा न कही कथा
                   न हक के लिए कभी,
                  तूने अपनी आवाज़ उठाई।
                  तेरे दुखते मन की पीड़ा,
                कभी किसी को नजर न आई।
                  नारी तू सृष्टि की जननी,
                  खुद को कभी समझ न पाई।
                  रही अबला 'औ' बनी बेचारी,
                ये बात न अभिलाषा मन भाई। ****************************
फोटो गूगल से साभार
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टिप्पणियाँ

  1. उफ्फ नारी की व्यथा जैसे अग्नि की कथा
    जो अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल दूसरों के लिए कर स्वयं राख हो जाती है
    बहुत सुंदर 👌

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    उत्तर
    1. धन्यवाद आंचल जी नारी जीवन है ही ऐसा पर
      नारी को न अत्याचार सहना चाहिए , न किसी पर करना चाहिए पर विडम्बना ये है कि नारी ही
      नारी की सबसे बड़ी दुश्मन बन जाती है।

      हटाएं
  2. बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति।
    नारी जीवन का निष्कर्ष कह दिया आपने इस कविता में
    बहुत उम्दा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार लोकेश जी बस व्यथा ही शब्द रूप में अभिव्यक्त हो उठी

      हटाएं
  3. बेहतरीन अभिलाषा जी ..मार्मिक लेखन
    सिर्फ भाने भर से काम नहीं होता स्तिथि को भाने लायक बनना पड़ता है
    तकलीफ गिनाने से क्या होगा तकलीफ दूर करो तो फायदा है है !

    जवाब देंहटाएं
  4. मैनें अपने विचारों से शुरूआत की है आदरणीया
    और मैं समझती हूं कि यदि नारी का दृष्टिकोण उदार
    हो जाए तो घरेलु समस्याएं समाप्त की जा सकती हैं
    और इसके लिए अहम् का त्याग सर्वोपरि है और इसके लिए तो कहा ही जा सकता है आपकी प्रतिक्रिया सकारात्मक है सादर आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह अभिलाषा जी नारी के जन्म से मृत्यु तक और हर रूप की सभी व्यथाओं को आपने बखूबी वर्णन किया है
    सहज विस्तार लेता लेखन और अंत मे मै न मानु वाला तेवर बहुत खूब!!
    शानदार लेखन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद आदरणीया कुसुम जी जो कुछ देखासुना
      समझा सोचा और जिया उसी को शब्दों में ढाल दिया अनुभूति की अभिव्यक्ति

      हटाएं
  6. बहुत ही मार्मिक... समाज की सच्चाई को दर्शाती उत्तम रचना आदरणीया

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार अमित आपकी सटीक प्रतिक्रिया का

      हटाएं
  7. सुंदर सृजन सखी ।बात तो मेरे मन भी न भाई सखी ....समाज के इस ढाँचे को बदलना होगा ....परिवर्तन आनें में बहुत समय लगेगा ,शुरुआत तो करनी होगी । क्यों रहे नारी अबला?

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